आज सुबह-सुबह ही फोन अलार्म की तरह बजे जा रहा था। पत्नी गुस्से में कह रही थी कि जागिए आपका फोन बज रहा है। मैंने आंखे मलते हुए फोन को देखा तो पता चला कि मेरे एक पुराने मित्र का फोन है। फोन उठाया तो उसने रोते हुए बताया कि उसका बेटा कल रात से लापता है। उसने बताया कि काफी खोजबीन के बाद जब उसका बेटा उसे नहीं मिला तो उसने पुलिस को इसकी जानकारी दी लेकिन पुलिस ने सुबह तक का इंतजार करने के लिए कह दिया है। सुबह भी हो गई लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है। बताओ मैं क्या करू? तुम तो पत्रकार हो, कोई मदद करों।

अब तक मेरी नींद पूरी तरह से उड़ चुकी थी मैंने अपने मित्र को मदद का पूरा आश्वासन देकर फोन रखने को कहा। फोन काटने के बाद मैं सोचने लगा कि आखिर मैं क्या कर सकता हूं? मैं तो सिर्फ खबर लिख सकता हूं। बहुत देर सोच-विचार करने के बाद मैंने अपने पत्रकार मित्रों को फोन मिलाया। सभी को इस घटना की जानकारी दी। किसी ने कहा कि हो सकता है कि वह अपने किसी रिश्तेदार के यहां चला गया हो। कोई बोला चलो थाने चलते है पुलिस कैसे मुकदमा दर्ज नहीं करती देखते है। मैंने उस सब से कहा ऐसा करने से बच्चा तो नहीं मिलेगा। हमे बच्चे को तलाश करना है।

जब मैं ऑफिस पहुंचा तो देखा कि वहां भी इसी विषय पर बातचीत हो रही थी। कोई कह रहा था कि बच्चों का अपहरण बाल मजदूरी के लिए कराने के लिए होता है। तभी एक रिपोर्टर ने चौंकाने वाली जानकारी देते हुए कहा, आज-कल बच्चों का अपहरण उनकी किडनी निकालने के लिए किया जाता है।

न जाने क्यों ये बात मेरे दिमाग में घुस गई। बिना समय को गवाएं मैंने उन अस्पतालों याद करना शरू किया जहां किडनी निकाली जा सकती थी। शाम तक कई अस्पतालों के चक्कर लगाने के बाद मैं एक अस्पताल में बाहर चाय पी रहा था। चाय की दुकान पर कुछ लोग किडनी संबंधी बाते कर रहे थे। एक आदमी कह रहा था कि हमारे बच्चे को अगर किडनी न मिली तो वह मर जाएगा। उसके पास खड़े दूसरे आदमी ने कहा कि आप परेशान न हो बस दस लाख रुपए का इंतजाम करें। किडनी का इंतजाम मैं करवा दूंगा।

बस अब मैंने अपना पूरा ध्यान उस आदमी पर लगा दिया। जो किडनी दिलाने की बात कर रहा था। अब मैं उसके पास जाकर खड़ा हो गया। मुझे अपने पास खड़ा देखकर उसने मुझ से पूछा कि जी कहिए? मैंने कहा आप से एक काम था जरा किनारे आइए। कुछ सकुचाते हुए वह भीड़ से किनारे आया और बोला, बोलिए।

मैंने कहां, जी मुझे एक बच्चे के लिए किडनी चाहिए। क्या आप कहीं से दिलवा सकते हैं? इतना सुनने के बाद उसने पहला प्रश्न किया कि आप क्या करते हैं? मैं समझ गया कि यह जानना चाहता है कि मैं वास्तविक ग्राहक हूं या नहीं। मैंने अपना परिचय एक सेल्समैन के रूप में दिया। मेरे इतना कहते ही समझ गया कि मैं उसके लिए नुकसान दायक नहीं हूं और अब तो वह सीधे बोला कि आप तो सेल्समैन हैं बिजनेस की बाते आसानी से समझ जाएगे। जरूरतमंद लोगों को किडनी दिलाना मेरा पेशा है।

उसने बताया कि दुनिया के सभी समृद्ध देशों में, भारत के समृद्ध वर्ग में भी, किडनी की मांग है। इस मांग में हर साल 23 प्रतिशत की दर से वृद्धि हो रही है।

उसने कहा कि किडनी दान करने वालों को मैं गलत नहीं समझता। हमारे यहां पुरातन काल से ऋषियों और मुनियों ने यह राह दिखाई है। जब परोपकार के लिए दधीचि अपनी हड्डियां दे सकते हैं। तो एक बच्चे की जान बचाने के लिए क्या हम एक किडनी भी नहीं दे सकते? हड्डियां दुबारा नहीं उगतीं।

लेकिन किडनी तो हमारे पास दो-दो हैं। ईश्वर ने आंख, हाथ, कान, पैर, किडनी, फेफड़े सब कुछ दो-दो दिए हैं जबकि एक ही किडनी से ही आदमी का काम चल सकता है। जाहिर है दूसरा कि डनी का ज्यादा उपयोग नहीं है और शायद ईश्वर ने मानवता के लिए ही हमें दो-दो किडनी दे रखी हैं।

उसने यह फैसला मनुष्य पर छोड़ दिया कि वो इसे अपने पास रखे या चंद पैसों के लिए किसी को किडनी बेच दे। इसलिए अपनी किडनी बेचना, अपनी एक आंख बेच देना, यह प्रत्येक व्यक्ति का फंडामेंटल अधिकार होना चाहिए। आप जिस अर्थनीति पर चल रहे हैं, उसमें बेचना सबसे फंडामेंटल कर्तव्य है। बेचो, वह सब बेचो, जो बिक सकता है।

जमीन बेचो, पानी बेचो, खाने बेचो, नदियां बेचो, मजदूर बेचो, लाइसेंस बेचो, निर्णय करने का अधिकार बेचो। विदेशी जिस चीज पर नजर गड़ा दे, उसे तुरन्त बेच दो। बिक्री दर बढ़ानी है कि नहीं? फिर इन्हें अपने पास रख कर क्या भुरता बनाना है? विक्रयवादी नीति के तहत जब आप देश की आजादी तक बेच सकते हैं, तो क्या मैं अपनी किडनी भी नहीं बेच सकता। नहीं बेचूंगा, तो खाऊंगा क्या? खाना क्या आप देंगे?

मेरे जैसे लोगों ने ही गरीबों को पहचाना है, गरीब वास्तव में गरीब नहीं हैं। उनके पास पांच लाख की किडनी है, तीन लाख का फेफड़ा है, दो लाख का कार्निया है। भविष्य में टेक्नालॉजी का इसी तरह विकास होता रहा, तो हाथ, पैर, कान आदि भी बेचे जा सकेंगे। गरीब लोग कम में काम चला लेने में माहिर होते हैं। गरीबों को जीवन निर्वाह के लिए एक किडनी और एक फेफड़ा काफी है।

जहां एक से काम चल सकता है, वहां दो क्यों लगाएं। इसी तरह, देखने के लिए भी एक आंख काफी है। दिखेगा तो वही सब न, जो दो आंखों से दिखता है! गरीब एक हाथ से भी अपना जीवन चला सकता है। एक पैर बेच दें और खाली जगह पर कृतिम पैर लगवा लें।

अंग प्रत्यारोपण का कानून सख्त है, इसीलिए बहुत से लोगों की रोजी-रोटी चल रही है। यह उदार हो जाएगा, तो डॉक्टर लोग गरीबों को क्यों पकड़ेंगे? कौन नहीं जानता कि ब्लड बैंकों में ज्यादातर खून गरीबों से ही आता है? जब कोई व्यक्ति खून बेचकर परिवार चला सकता है, तो वह किडनी या कॉर्निया बेच कर क्यों नहीं चला सकता? इसमें तो ज्यादा पैसा मिलता है।

इतना सब सुनने के बाद मैंने किडनी बेचने वाले से पूछा कि सौदा तो पक्का होगा न क्यों दस लाख की रकम बहुत बड़ी होती है। मुझे विश्वास दिलाने के लिए वह मुझे एक प्राइवेट अस्पताल में ले गया। जहां मैंने कई बच्चों को देखा जिनकों बधंक बना कर रखा गया था। इनमें से तो कई की किडनी निकाली जा चुकी थी। तभी अचानक मेरी नजर एक स्ट्रेचर पर पड़ी जिस पर मेरे मित्र का का बेटा लेटा हुआ था। उसे देखते ही उसे मैं पहचान गया क्योंकि उसकी फोटो मैंने फेसबुक पर देखी थी।

अब बस मैं यह सोचने लगा कि आखिर मैं कैसे इस बच्चे को इस जगह से निकालूं। मैं अच्छी तरह से जानता था कि इस अस्पताल में कोई अपनी मर्जी से आ-जा नहीं सकता। तभी मैंने देखा कि एक डॉक्टर मेरे मित्र के बच्चें के पेट को टटोल कर देख रहा है। अब तो मेरी दिल की धड़कने बढऩे लगी। मैं परेशान हो गया अब क्या करू?

इसी बीच मेरी उलझन और पत्नी ने टोका, नींद में क्या बड़-बड़ा रहे हो। थोड़ी देर के लिए मैंने भगवान को धन्यवाद दिया और आग्रह किया कि इस सपने को कभी साकार मत होने देना। अच्छा हुआ कि यह सपना था। लेकिन सोचने की बात यह कि कुछ लोग अपने बच्चे के जीवन के लिए किसी और के बच्चों की जिंदगी चंद पैसों के लिए खतरे में कैसे डाल देतें हैं। आखिर वह भी किसी आंखों का तारा होता है?

लेखक परिचय:

श्रवण गुप्ता

संपादक

www.newshawk.in

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