उत्तर प्रदेश कारागार विभाग एक निरीह विभाग हैं। यह कहना है विभाग के ही अधिकारियों और कर्मचारियों का। इनका कहना है कि कारागार विभाग का शासन में कोई हितैषी नहीं है। अंग्रेजों के समय पर बने जेलमैनुअल से कारागार प्रशासन संचालित किया जा रहा है। कारागार विभाग के अधिकारियों व कर्मचारी मूक दर्शक व्यक्ति बनकर मौन बनकर खड़ा रहता है। वर्तमान समय में बढ़ रही आरजकता की रोकथाम के लिए आधुनिक सुविधाओं से लैस होने की आवश्यकता है। सरकार द्वारा रणनीत तैयार कर आधुनिक टेकनोंलजी की सामाग्री खरीदी तो जाती है लेकिन वह दलाली के भेट चढ़ जाती है। कुछ ही दिनों वह सामाग्री कारागार के पुराने स्टाक रूम में फेंक दी जाती है।

शासन द्वारा संचालित कारागार व्यवस्था में किसी अधिकारी की निगाह नहीं रहती। जब कोई घटना होती तभी शासन जागता है। लोगों का ध्यान भटकाने के लिए कमेटी गठित कर दी जाती है। कुछ दिनों बाद फिर वही पुराने ढर्रें पर जेले चलने लगती हैं।

कारागार विभाग के चाटूकार अधिकारी ही विभाग में छाये रहते हैं। अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों को ‘काफिर‘ मान लिया जाता है। इन्हें पूरे सर्विस काल में किनारे कर दिया जाता है। चाटूकार अधिकारी अपने को कारागार विभाग एक होनहार व्यवस्थापक बताते हैं और ढीली व्यवस्था के दम पर जमकर स्वयंसेवा करते हैं। यह व्यवस्था कारागार मुख्यालय की देन है। एक जाति विशेष का अधिकारियों का गु्रप अपने जाति के अधिकारियों को सहूलियत व सहयोग करने में व्यस्त रहता है। इसके बदले उनसे मोटी रकम वसूलता है। इस सब से अन्य संवर्ग के अधिकारी प्रशानिक व्यवस्था से अलग थलग पड़ जाते है। एक ही विभाग में कई गुट बनने से कई तरह की घटनाऐं कारागार में हो जाती हैं।

कारागार विभाग में अलग से मंत्री व प्रमुख सचिव न होने के कारण कारागार की व्यवस्था का संचालन बहुत ही धीमी गति से चल रहा है। ऐसी स्थिति में प्रशासनिक मशीनरी में जंग लग जाना स्वाभाविक है। इसी लचर व्यवस्था का नतीजा है कि बागपत, बहराईच, फतेहगढ, बरेली, नैनी इलाहाबद, हमीरपुर, मिर्जापुर, बनारस, आदि जेलें जेल अधीक्षक विहीन हैं। ऐसी संवेदनशील जेलों का अधीक्षक/जेलर/उप जेलर विहीन होना निश्चित रूप से ही कोई बड़ी दुर्घटना को न्योता देने जैसा है।

कारागार विभाग में जेलों में व्यवस्था सबसे ज्यादा खराब करने का श्रेय पूर्व आईजी जेल को जाता है। उन्होंने अपने रिटार्डमेंट के दिन 31 मई को विभाग में बड़ा फेर बदल किया। जिसका खमियाजा वर्तमान आईजी जेल चन्द्र प्रकाश को भुगतना पड़ रहा है।

वर्तमान आईजी जेल द्वारा व्यवस्था को सुधारने का प्रयास किया जा रहा है। शासन का सहयोग न मिलने से सुधार के योजनाएं सफल नहीं हो पा रहीं हैं। आईजी जेल चन्द्र प्रकाश द्वारा खाली जेलों को भरने के लिए व स्थानान्तरित जेलर व उप जेलरों का स्थानान्तरण आदेश करने का अनुरोध किया गया है। शासन की तरफ से अभी तक कोई कार्रवाई नहीं कि गयी।

कारागार विभाग में बजट की स्थिति बहुत ही दयानीय है। कारागार अधीक्षक कर्मचारियों के स्थानान्तरण तो कर दिये जाते है लेकिन स्थानान्तरण टीए लेने लिए लम्बी लाइन लगानी पड़ती है। कर्मचारियों आवास नाममात्र के हैं। बच्चों की पढ़ाई के लिए कोई व्यवस्था नहीं किसी मेहमान के आने पर किसी प्रकार का गेस्टहाउस नहीं है। जिलों में आवास सुरक्षा विहीन हैं। कोई भी अपराधी परिसर में आकर किसी पर भी हमला कर सकता है। जायदातर आवासों की हालत बहुत ही खराब है। आवासों की चार दिवारी नहीं है। पानी बिजली की व्यवस्था नहीं है। नयी जेलें जो भी तैयार की जा रही है, वो षहर से बहुत दूर बनायी जा रही है। जिससे सुरक्षा न बन्दी की न ही कर्मचारी की। किसी के साथ कोई भी घटना होना आम बात है।

सूबे की जेलें पूर्वाचल व पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अपराधियों से भरी पड़ी हैं। जेल के अन्दर स्थानीय बन्दी होने के कारण अपनी व्यवस्था अपनी मनमानी ढ़ग से करते है। यदि कोई अधिकारी उन पर लगाम लगाना चाहता है। तो उसे मरने के लिए तैयार रहना पड़ता है। जैसा कि कई अधिकारी और कर्मचारियों पर जानलेवा हमले भी हुए हैं। यदि वह उनके हाल में छोड़ दे तो शासन की और उसे निलम्बन आदि के लिए तैयार रहना पड़ता है। इसका मतलब साफ है कि एक तरफ कुंआ है तथा दूसरी खाई है जाये तो कहां जाये।

मैजूदा सरकार से कारागार विभाग को उम्मीद है कि वह अंग्रेजों के जमाने से चल रही जेल मैनुअल को बदलकर कारागार विभाग के अधिकारी और कर्मचारियों को मजबूत अधिकार देगी। जिससे अपराधियों पर मजबूती से षिकंजा कसा जा सके। समय पर बजट पर्याप्त मुहैया कराया जाएगा। स्थानान्तरण नीति पर पारदर्षिता लायेगी। कारागार विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों को आवासीय सुविधाए कराई जएंगी। मेंटीनेष के लिए भी पर्याप्त बजट की व्यवस्था की जाएगी। कारागार के बाहर भी अधिकारियों को सुरक्षा मुहैया कराई जाएगी। चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की संख्या बढ़ायी जाएगी।

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