30 सितंबर को रिटायर होंगी एशिया की पहली महिला लोको पायलट

सुरेखा यादव ..एक ऐसा नाम जो इन दिनों हर किसी की जुबां पर है। बिजनेसमैन आनंद महिंद्रा भी उन्हें लेकर इमोशनल हो गए। एशिया की पहली महिला लोको पायलट (ट्रेन ड्राइवर) सुरेखा यादव 36 साल की सर्विस के बाद 30 सितंबर को रिटायर हो रही हैं। लेकिन इससे पहले सुरेखा ने ऐसे इतिहास रच दिए हैं, जिनके पन्ने पलटकर देश की हर बेटी को यह यकीन हो जाएगा कि बेटियां कुछ भी कर सकती हैं।
1989 में जब सुरेखा ने रेलवे में नौकरी शुरू की, तब शायद ही कोई होगा जिसने यह सोचा होगा कि एक दिन ट्रेन को कोई महिला चलाएगी। लेकिन सुरेखा यादव ने ऐसा कर दिखाया। मालगाड़ी चलाने से जो सफर शुरू हुआ, वो वंदे भारत तक पहुंच गया। अब सुरेखा के ‘सपनों की ट्रेन’ आखिरी स्टेशन पर पहुंचने वाली है। 30 को वो रिटायर हो जाएंगी। इससे पहले आइए बीते 3 दशकों के पन्ने पलटते हैं और सुरेखा यादव के उन पलों को याद करते हैं।
महाराष्ट्र के सतारा में सुरेखा यादव का जन्म 2 सितंबर, 1965 को एक किसान परिवार में हुआ। भाई-बहनों में वो सबसे बड़ी हैं। उनके परिवार या गांव में भी कभी किसी ने नहीं सोचा था कि कोई महिला कभी ट्रेन चला सकती है। यहां तक कि खुद सुरेखा ने भी इस बारे में शायद कल्पना नहीं की होगी। सुरेखा ने पॉलिटेक्निक से डिप्लोमा किया। सुरेखा बी.एड करके टीचर बनना चाहती थी। फॉर्म भी भर दिए थे। लेकिन इस बीच रेलवे में सिलेक्शन हो गया।
1986 में entrance exam पास किया और फिर इंटरव्यू में भी सफलता हासिल की। ट्रेनिंग स्कूल में सहायक ड्राइवर के रूप में नियुक्ति हुई। फिर ट्रेनिंग पूरी होने के बाद 1989 में असिस्टेंट ड्राइवर के रूप में सुरेखा ने अपने नए सफर की शुरुआत की। 1996 में उनका प्रमोशन हुआ और पहली बार उन्हें एक मालगाड़ी चलाने का मौका मिला।
बात साल 2000 की है। तब ममता बनर्जी रेल मंत्री थीं। उन्होंने चार मेट्रो शहरों में लेडिज स्पेशल ट्रेन चलाने का ऐलान किया। इसके बाद उन्हें पहली बार पैसेंजर ट्रेन चलाने का मौका मिला। उनका प्रमोशन मोटरवुमैन के तौर पर हुआ। इसके बाद वो अपने करियर में आगे ही बढ़ती चली गईं।
साल 2010 में उन्होंने घाट ड्राइवर के रूप में क्वालीफाई किया और वो लोको पायलट के रूप में प्रमोट हुईं। इसके बाद सबसे मुश्किल और चुनौतीपूर्ण माने जाने वाले पुणे से सीएसटी के बीच डेक्कन क्वीन चलाई। राजधानी एक्सप्रेस चलाने के बाद 2023 में उन्हें वंदे भारत एक्सप्रेस चलाने का गौरव भी हासिल हुआ।
ठाणे की रहने वाले सुरेखा यादव ने अपने इस सफर के बारे वह कहती हैं कि उन्हें सीनियर्स और साथियों से काफी सम्मान और समर्थन मिला। रेलवे ने मुझे यह अवसर देकर बहुत ही बड़ा सम्मान दिया। मेरे माता-पिता ने कभी मुझे इस पेशे को चुनने से मना नहीं किया। अब इसी पेशे ने मुझे काफी सारी उपलब्धियां दीं। सुरेखा के पति महाराष्ट्र पुलिस में हैं और दोनों बेटे भी इंजीनियर हैं।