लखनऊ। उत्तर प्रदेश लघु उद्योग निगम लि0 (यूपीएसआईसी) के प्रबंध निदेशक ने 15 सितम्बर को निदेशक बाल विकास सेवा एवं पुष्ठाहार को लिखे पत्र में कहा कि उत्तर प्रदेश लघु उद्योग निगम लि0 द्वारा अपनी मैनपावर योजना का उच्चीकरण करते हुए एकीकरण साफ्टवेयर सृजित किया जा रहा है तथा नवीन सामान्य नीति बनाई जा रही है। जिसके कारण से यूपीएसआईसी यह कार्य करने में असमर्थ है।

इस कार्य को न कहने वाले और एसी कमरे में बैठने वाले प्रबंध निदेशक शायद यह भूल गये कि यूपीएसआईसी के कर्मचारियों को आज भी चौथे वेतनमान का लाभ ही दिया जा रहा है। क्योकि यूपीएसआईसी अपने कर्मचारियों को सातवें वेतनमान के अनुसार वेतन देने में असमर्थ है। इस कार्य से यूपीएसआईसी को लाखों सर्विस चार्ज के रूप में मिलते लेकिन एमडी साहब को इसकी परवाह नहीं क्योंकि उनको वेतन सरकार से मिलता है।

ज्ञात हो कि 14 अक्टूबर 2015 के पहले यूपीएसआईसी अपने कर्मचारियों को वेतन तक नहीं दे पा रहा था। क्योकि वेतन देने के लिए सरकार का मुह ताकने के अलावा अन्य कोई रास्ता नहीं था।

यूपीएसआईसी के कमाई के रास्ते
यूपीएसआईसी वर्तमान में विभागों से मिले काम पर 5 प्रतिशत सर्विस चार्ज लेता है और अपने वेडरों (इनपैनल कंपनियां) से लगभग 1 प्रतिशत सर्विस ही देता है। यानि 4 प्रतिशत सर्विस चार्ज यूपीएसआईसी के हिस्से में आता है। यह 4 प्रतिशत सर्विस चार्ज लाखों में होता है।
ज्ञात हो कि वर्तमान में यूपीएसआईसी में 24 कंपनियां इनपैनल है। यह कंपनियां जब किसी बेरोजगार से रोजगार देने के लिए रजिस्ट्रेशन कराती है तो उनसे रजिस्टेशन फीस के नाम पर 590 (टैक्स सहित) रूपये लेती है। इस रजिस्ट्रेशन फीस का 65 प्रतिशत यूपीएसआईसी को मिलता है। यह रकम भी लाखों में होती है।

चहेती कंपनियों को फायदा पहंचाने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने बनाया शासनादेश
स्वास्थ्य विभाग ने अपनी चहेती कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए 31 दिसम्बर 2015 को एक ऐसा शासनादेश किया जिसमें प्राइवेट कंपनियों का नाम स्पष्ट तरीके से लिख दिया गया। ताकि यूपीएसआईसी चाह कर भी यह काम अपने किसी और वेंडर से न करा सके। यह उत्तर प्रदेश ही नहीं भारत के इतिहास में पहली बार हुआ होगा कि किसी शासनादेश  में प्राइवेट कंपनियों का नाम लिखा गया हो।
जबकि 14 अक्टूबर 2015 के शासनादेश के अनुसार कोई भी शासकीय, अद्र्वशासकीय विभाग, सार्वजनिक उपक्रम, निगम, संस्था, संस्थान आदि जिन्हें विभिन्न प्रकार की जनशक्ति की आवश्यकता होगी वह अपनी आवश्यकतानुसार उत्तर प्रदेश लघु उद्योग निगम लि0 को सीधे मांग प्रेषित करेंगे। हालाकि उत्तर प्रदेश लघु उद्योग निगम लि0 कानपुर के माध्यम से कार्मिक इंगेज करने की बाध्यता नहीं होगी, वरन प्राथमिकता के आधार पर विकल्प के रूप में उत्तर प्रदेश लघु उद्योग निगम कानपुर को मैनपावर आउट सोर्सिंग एजेन्सी माना जायेगा।

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार एक ओर यूपीएसआईसी के एमडी नये काम करने से मना कर रहे हैं। दूसरी ओर उनकी नाक के नीचे ही स्वास्थ्य विभाग में नये एग्रीमेट हो रहे हैं और मैनपार की भर्ती की जा रही है। सबसे मजेदार बात यह है कि जो कंपनियां स्वास्थ्य विभाग में काम कर रही है उनकी बैंक गारंटी भी यूपीएसआईसी में जमा नहीं है। अगर ये कंपनियां सरकार का पैसा लेकर भाग जाये तो इसकी रिकवरी कैसे होगी। यह एक यक्ष प्रश्न है।

सीएमओ हरदोई की नादानी
जिले स्तर के अधिकारी से इस प्रकार की नादानी की उम्मीद नहीं की जा सकती है। सीएमओ हरदोई ने बिना जाने समझे 6 अक्टूबर को एक कंपनी को मैनपार उपलब्ध कराने का आर्डर दे दिया है। उन्होंने इस संबंध में अपने उच्च अधिकारियों से परामर्श लेना भी उचित नहीं समझा। उनके इस आदेश से तो ऐसा लगता है कि जैसे वह नोडल एजेंसी यूपीएसआईसी को जानते ही नहीं हैं। काश उन्होंने  यूपीएसआईसी से ही एक पूछ लिया होता।

यूपीएसआईसी के एक कर्मचारी ने नाम न छापे जाने के शर्त पर बताया कि स्वास्थ्य विभाग के 31 दिसम्बर 2015 के शासनादेश में जिन कंपनियों का नाम लिखा है, वह कंपनियां स्वयं को यूपीएसआईसी से ऊपर समझती हैं। कंपनियों का कहना है कि आप हमें क्या देते हैं हमारे पास स्वास्थ्य विभाग का शासनादेश है। यह काम हम ही कर सकते हैं अन्य कोई और नहीं। ये कंपनियां मांगी गई सूचनाएं भी समय पर उपलब्ध नहीं कराती हैं। अपने पूर्व में हुए एग्रीमेंट के आधार पर यह कंपनियां आज भी 10 प्रतिशत सर्विस चार्ज वसूल रही हैं। जबकि यूपीएसआईसी ने सर्विस चार्ज की दरें 5 प्रतिशत कर दी हैं। इन कंपनियों ने बेरोजगारों से रजिस्ट्रेशन के नाम पर जो लाखों रूपये कमाएं है उसका 65 प्रतिशत भी यूपीएसआईसी को नहीं जमा किया है। यह कंपनियां स्वास्थ्य विभाग के शासनादेश  बल पर यूपीएसआईसी को मुह चिढाती रहती हैं।

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