लखनऊ। पाइप्ड नेचुरल गैस (पीएनजी) योजना चंद घोटालेबाज अफसरों की मिलीभगत से भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई है। ग्रीन गैस लिमिटेड के एमडी जिलेदार और प्रोजेक्ट मैनेजर हिमांशु पांडेय के काले कारनामे की शिकायत हाल ही में सेंट्रलाइज्ड पब्लिक ग्रीवांस रिड्रेस एंड मॉनिटरिंग सिस्टम (सीपीजीआरएएमएस) ने पेट्रोलियम मंत्रालय को भेजी है। शिकायत में जिक्र किया गया है कि एमडी जिलेदार और प्रोजेक्ट मैनेजर हिमांशु पांडे महत्वाकांक्षी परियोजना का बेड़ा गर्क कर रहे हैं। शिकायत में कहा गया है कि हिमांशु पांडे कुछ भाजपा नेताओं और गेल सीएमडी बीसी त्रिपाठी से रिश्तेदारी जोडक़र 2009 से लखनऊ में तैनात हैं। लिहाजा, पीएनजी योजना गैस की बजाए घोटालों की सप्लाई का जरिया बन गई है।

हैरानी की बात है कि पीएनजी सप्लाई के बहाने कई वर्षों से राजधानी में घपलों का खेल चल रहा है, इसके बावजूद भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था देने का दावा करने वाली भाजपा सरकार को भनक तक नहीं लगी। जिलेदार को एमडी बनाकर पीएनजी योजना को साकार करने के लिए भेजा गया था। हालात यह हैं कि जिलेदार मौजूदा कृत्यों और साक्ष्यों के आधार पर घोटालेदार साबित हुए हैं। केन्द्र सरकार को सूचना दी गई है कि लक्ष्य के अनुपात में पीएनजी कनेक्शन दे दिए गए हैं। इसके उलट थोक में ऐसे घर हैं जहां पीएनजी कनेक्शन नहीं हैं। इससे भी गंभीर बात यह है कि पीएनजी सप्लाई में जिन मानकों का पालन होना था वह अवैध कमाई के भेंट चढ़ा दिये गये हैं। खामीपूर्ण कार्यप्रणाली का नतीजा यह है कि आये दिन शहर के किसी न किसी कोने में गैस लीकेज की सूचनायें मिल रही हैं।

मानकों के अनुरूप, नालों और पुलों के नीचे पीएनजी पाइप बिछाने के दौरान केसिंग होनी चाहिए थी, जो नहीं की गई है। ऐसी स्थिति में दबाव पडऩे पर कभी भी पाइप फट सकते हैं। जाहिर है एमडी जिलेदार और प्रोजेक्ट मैनेजर हिमांशु पांडे ने अवैध कमाई के लिए राजधानी को खतरे के मुहाने पर धकेल दिया है। शिकायत के बाद ग्रीन गैस लिमिटेड से पूरे प्रकरण में रिपोर्ट मांगी गई है। बता दें कि पाइप नेचरल गैस यानि पीएनजी जैसी महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट की नींव कांग्रेस सरकार में पड़ी थी। योजना अच्छी थी सो मोदी सरकार ने भी इसे प्रोत्साहित किया। पर, योजना मंजिल तक पहुंचने से पहले ही भ्रष्टाचार का शिकार हो गई। इस भ्रष्ट मुहिम के मुखिया भी वही हैं जो ग्रीन गैस लिमिटेड के एमडी बनाये गए हैं। जिलेदार नाम के इन साहब को बड़े अरमान के साथ गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया से प्रतिनियुक्ति पर ग्रीन गैस लिमिटिड का एमडी बनाया गया। पद संभालते ही जिलेदार ने कदम दर कदम घोटालों का ऐसा जाल बिछाया कि पूरी योजना ही इसमे उलझ गई है।

रिश्तेदारों को दिये ठेके
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। कभी नोटबंदी तो कभी डिजिटल लेनेदेन। इसके बावजूद उनके अफसर इन नेक मुहिम पर पलीता लगा रहे हैं। काली कमाई के लिए क्या-क्या हिमाकत अपनाई जा सकती है इसका मुजाहिरा पीएनजी योजना में देखा जा सकता है। ग्रीन गैस लिमिटेड के एमडी जिलेदार और प्रोजेक्ट मैनेजर हिमांशु पांडे के गठजोड़ ने पूरे सिस्टम को घुटने पर पहुंचा दिया है। पहुंच के बूते इनकी करतूतों पर अब तक कोई कार्रवाई भी नहीं हुई है। अवैध कमाई के इस गठजोड़ ने ब्लैकलिस्टेड कंपनी डीएस इंटर प्राइजेज तक को ठेका देने में हिचक नहीं दिखाई। बहती गंगा में हाथ धोने के लिए प्रोजेक्ट मैनेजर हिमांशु पांडे ने भी अपने रिश्तेदार को पेटी कांट्रैक्ट पर काम दिला दिया। नॉप्स कंपनी के अधीन हिमांशु पांडे का रिश्तेदार काम कर रहा है। अचरज की बात तो यह है कि शहर भर में करीब 350 किमी से अधिक खुदाई हुई, जबकि नगर निगम को महज 50 किमी का मुआवजा देकर चलता कर दिया गया। बाकी बची राशि घोटाले की भेंट चढ़ गई।

ब्लैकलिस्ट कंपनी पर मेहरबान
जीजीएल एमडी के काले कारनामों की इंतहां यहीं नहीं रुकी इन्होंने डीएस एंटरप्राइजेज नाम की ब्लैकलिस्टेड कंपनी को भी काम देने में हिचक नहीं दिखाई। दस्तावेज इसके सबूत हैं कि डीएस इंटरप्राइजेज नाम की कंपनी गुजरात में फर्जी बैंक गारंटी देने की दागी है। पूंछने पर एमडी जिलेदार बच्चो सी मासूमियत से कहते हैं कि मुझे तो मालूम नहीं। इसके लिए थर्ड पार्टी से परीक्षण कराया जाता है। इससे भी बढक़र कारनामा यह हुआ है कि नालों और पुलिया के नीचे पाइप बिछाने में केसिंग किये जाने का प्राविधान है। सरकारी लूट के चक्कर में ये मानक भी धरे रह गए। जहां पाइप बिछा ली गई है उन मोहल्लों में अबतक नाममात्र कनेक्शन हो पाये हैं। जमीनी हकीकत से उलट कंपनी ने पांच हजार कनेक्शन कागजों में दर्ज किये हैं। ऐसे में पीएनजी योजना किस घाट लगेगी इसका अहसास डरावना है।

टेंडरिंग में घपलों का सिंडीकेट
पीएनजी सप्लाई में काम कर रही डीएस इंटरप्राइजेज ने पूरी टेंडरिंग प्रक्रिया में हुए काले कारनामें का खुलासा कर दिया है। डीएस इंटरप्राइजेज इससे पहले गुजरात में भी काम कर चुकी है। यहां फर्जी बैंक गारंटी जमा करने का दोषी पाए जाने पर कंपनी को ब्लैकलिस्ट किया जा चुका है। इसके दस्तावेज भी मौजूद हैं। हास्यास्पद तो यह है कि जब जीजीएल एमडी जिलेदार का इस संदर्भ में कहना है कि मुझे मालूम नहीं है। टेंडर से पूर्व कंपनी की प्रोफाइल जांचने के सवाल पर उन्होंने बताया कि पड़ताल बाकायदा होती है। एमडी का यह बयान साफ जाहिर करता है कि डीएस इंटरप्राइजेज को ब्लैकलिस्ट करने वाली भाग्यनगर गैस लिमिटेड के पत्राचार की पूरी जानकारी थी, इसके बावजूद दागी कंपनी पर उन्होंने मेहरबानी की।

परियोजना तो बस बहाना है…असल में पैसा बनाना है
जीजीएल की कार्यशैली देखें तो हर कोण से साजिश और धनउगाही के प्रमाण मिल जाएंगे। एमडी ने इस परियोजना के जरिए निजी पैसा बनाने का कोई मौका नहीं छोड़ा। इसी का नतीजा रहा कि वृंदावन कालोनी में पाइप बिछाने के लिए नया कुचक्र रचा गया। योजना के तहत पूर्व में तय था कि वृंदावन कालोनी के सेक्टर-5 में स्टेशन खुलेगा। इसमें भी जिलेदार साहब ने अपनी कमाई का रास्ता निकाल लिया। इसी क्रम में आशियाना से वृंदावन कालोनी तक अनावश्यक रूप से आठ किमी की लाइन बिछवा दी गई। इस पर 60 लाख रुपए खर्च दिखाया गया जो कि आपसी बंदरबाट की भेंट चढ़ा।

जोखिमों से घिरी राजधानी
जिलेदार की मुखियागिरी में न सिर्फ नगर निगम लखनऊ को चूना लगाया बल्कि पूरी राजधानी को भी जोखिमों से घेर दिया है। भ्रष्टाचार और काली कमाई की अनंत लालसा ने ग्रीन गैस लिमिटिड के एमडी यह तक भूल गए कि वे लाखों की आबादी को भयानक खतरे के डाल रहे हैं। प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ से लेकर प्रधानमंत्री मोदी तक को भान नहीं है कि उनका एक पब्लिक सर्वेन्ट किस हद तक भ्रष्ट है। सिलसिलेवार हम बता रहे हैं कि जिलेदार नामक इस जीव ने आम खास नागरिकों को खतरे में डालकर कैसे स्वार्थ सिद्ध साधने में लीन है। अप्रैल 2016 में राजधानी के दो इलाकों में पीएनजी सुविधा देने की शुरुआत हुई। गोमतीनगर विस्तार और आशियाना क्षेत्र में शुरू हुआ यह प्रोजेक्ट 16 अप्रैल 2017 में पूरा होना था। घोटालों के चक्कर में फिलहाल ये मियाद हाथ से सरक गई है। इसके बावजूद जीजीएल एमडी ने ठेकेदार संस्थाओं पर पेनाल्टी ठोकने में कोताही बरत गए। इतना ही नहीं हालात यह रहे कि यदि 50 किमी की खुदाई हुई तो नगर निगम को महज 5 किमी के हिसाब से भुकतान किया गया। बाकी बचे पैसों की जमकर बंदरबाट हुई।

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