लखनऊ। ‘दुविधा में दोनों गये माया मिली न राम‘ ये लाइन आप ने कई बार सुनी होगी। ये लाइन शेखुल हिन्द मौलाना महमूद मेडिकल कालेज, सहारानपुर के प्रधानाचार्य पर फिट बैठ रही है। क्योकि इनदिनों उन्होंने एक मैनपावर आउटसोर्सिंग का टेंडर निकाला हुआ है। यह टेंडर उसके लिए गले की हड्डी बना हुआ है। क्योंकि वह तो टेंडर निकालना नहीं चाहते लेकिन चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक केके गुप्ता के कहने पर टेंडर निकाल दिया है। बिना पूरी तैयारी के टेंडर निकालने का नतीजा यह हुआ कि आए दिन शुद्वि पत्र प्रकाशित करवाना पड रहा है।

19 अगस्त को प्रकाशित शुद्वि पत्र के अनुसार अब टेंडर खोले जाने कि तिथि बढाकर 26 अगस्त कर दी गई है। इलाहाबाद से टेंडर की हार्ड कापी डालने आये एक कंपनी के प्रतिनिधि ने बताया कि यहां आकर मुझे पता चला कि सहारनपुर मेडिकल कालेज के प्रधानाचार्य ने टेंडर में कई और नियम जोड दिये हैं।

जैसे कि तकनीकी निविदा का आगणन नंबरों पर नहीं था जो कि अब नंबर पर आधारित कर दिया गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक केके गुप्ता की चहेती कंपनी के अतिरिक्त भी कई सारी कंपनियां तकनीकी निविदा में पास हो जाती।


इस निविदा के बिल आॅफ क्वांटिटी (बी.ओ.क्यू) के आधार पर सहारनपुर मेडिकल कालेज में कुल 311 पदों में से 289 पदों पर पूर्व से ही कर्मचारी कार्यरत हैं तथा मात्र 22 पदों पर नई नियुक्ति होनी है। इन 22 पदों में कोई भी पद पैरा मेडिकल से संबंधित नहीं है। ऐसी स्थिति में नई आगणन सीट में लगभग 70 नंबर पैरामेडिकल क्षेत्र में कार्य करने वाली कंपनी को दिये जायेगे।


विशेषज्ञों की जानकारी के अनुसार हैसियत प्रमाण पत्र न्यूनतम एक वर्ष के लिए बनता है। ऐसी स्थिति में 9 माह से ज्यादा पुराना हैसियत प्रमाण पत्र को वैध न मानना अपने को नियम-कानून से ऊपर समझना है।
नई आगणन सीट के बिन्दु संख्या एक के अनुसार स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र को छोडकर अन्य क्षेत्रों में समान कार्यानुभव होने के बावजूद भी अन्य कंपनियां इस टेंडर के मांगे गए प्राप्तांक को प्राप्त नहीं कर सकती हैं।
नई आगणन सीट के बिन्दु संख्या 4.2.3 के अनुसार ऐसा प्रतीत होता है कि इस टेंडर के माध्यम से सहारनपुर मेडिकल काॅलेज के अतिरिक्त कही और भी मैनपावर सप्लाई किया जायेगा।

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