नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय ने आज संकेत दिए कि जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के विशेष अधिकारों से संबंधित संविधान के अनुच्छेद 35ए को चुनौती देने वाली याचिका पर पांच सदस्यीय संविधान पीठ सुनवाई कर सकती है। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा तथा न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर की पीठ ने सुनवाई के लिये आयी याचिका को पहले ही लंबित ऐसी ही एक अन्य याचिका के साथ संलग्न कर दिया जिस पर इस महीने के आखिर में तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ सुनवाई करेगी। पीठ ने कहा, ‘‘अगर इस विषय पर पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ से सुनवाई की आवश्यकता महसूस की गयी तो तीन न्यायाधीशों वाली पीठ इसे उसके पास भेज सकती है।’’ याचिका पर सुनवाई के दौरान जम्मू-कश्मीर सरकार के वकील ने कहा कि जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय ने 2002 में सुनाए गए अपने फैसले में अनुच्छेद 35ए के मुद्दे का ‘‘प्रथम दृष्टया निपटान’’ कर दिया था। उच्चतम न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 35ए तथा जम्मू-कश्मीर संविधान की धारा छह (राज्य के ‘‘स्थायी निवासियों’’ से संबंधित) को चुनौती देने वाली चारू वली खन्ना की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। याचिका में संविधान के उन प्रावधानों को चुनौती दी गयी है जो राज्य के बाहर के व्यक्ति से शादी करने वाली महिला को संपत्ति के अधिकार से वंचित करता है। राज्य की निवासी ऐसी : ऐसी : महिला को संपत्ति के अधिकार से वंचित करने वाला प्रावधान उसके बेटे पर भी लागू होता है। वकील बिमल रॉय जाड के जरिये दायर की गयी याचिका में चारू ने कहा है कि अगर कोई महिला जम्मू-कश्मीर के बाहर के व्यक्ति से शादी करती है तो वह संपत्ति के अधिकार के साथ ही राज्य में रोजगार के अवसरों से भी वंचित हो जाती है। जम्मू-कश्मीर के अस्थायी निवासी प्रमाणपत्र धारक लोकसभा चुनाव में तो मतदान कर सकते हैं परंतु वे राज्य के स्थानीय चुनावों में मतदान नहीं कर सकते। दिल्ली स्थित एक गैर सरकारी संगठन ‘‘वी द सिटीजन्स’’ ने भी संविधान के अनुच्छेद 35ए को चुनौती दे रखी है जिसे प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने वृहद पीठ के पास भेज दिया था।

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