नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय ने राज्यों से कहा है कि यदि शीर्ष अदालत में कोई मामला लंबित है तो उन्हें भयभीत नहीं होना चाहिए क्योंकि वह ‘‘नरभक्षी टाइगर नहीं है।’’

न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने खनन से संबंधित एक मामले की सुनवाई के दौरान टिप्पणी की, ‘‘हम टाइगर या ऐसा कुछ नहीं हैं। हम नरभक्षी टाइगर नहीं हैं उन्हें भयभीत नहीं होना चाहिए।’’

न्यायालय ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब एक निजी फर्म की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने दलील दी राज्य सरकार पर दबाव बनाने के इरादे से आंध्र प्रदेश में गैरकानूनी खनन का आरोप लगाते हुये कंपनी के खिलाफ याचिका दायर की गयी है।

आंध्र प्रदेश सरकार के वकील ने ट्राइमेक्स समूह का खनन कार्य निलंबित करने के बारे में राज्य सरकार के हालिया आदेश न्यायालय के रिकार्ड के लिये पेश किये। रोहतगी ने कहा कि यह गैरकानूनी खनन का मामला नहीं है और राज्य सरकार ने यह निर्णय लिया है जबकि शीर्ष अदालत इस मामले की सुनवाई कर रही है।

याचिकाकर्ता पूर्व नौकरशाह ईएएस सरमा के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि राज्य सरकार ने सिर्फ लाइसेंस निलंबित करने का आदेश दिया है लेकिन उन्हें इसे रद्द करके कंपनी से पैसा वसूल करना चाहिए।

इस पर रोहतगी ने कहा कि यह याचिका राज्य सरकार पर दबाव बनाने के लिये ही दायर की गयी है। ऐसा कोई मामला ही नहीं है जिसे गैरकानूनी काम का नाम दिया जा सके। हमें इसे चुनौती देनी पड़ेगी।

रोहतगी ने जब यह दावा किया कि सरकार के आदेश ने याचिकाकर्ता के प्रयास को सफल बना दिया है तो पीठ ने टिप्पणी की, ‘‘एक राज्य सरकार इतनी बेबस नहीं है कि एक या दो व्यक्ति उस पर दबाव बना सकें। इसके साथ ही पीठ ने इस मामले की सुनवाई 27 सितंबर के लिये स्थगित कर दी।

शीर्ष अदालत ने आंध्र प्रदेश में कंपनी द्वारा गैरकानूनी तरीके से खनन के आरोपों की न्यायालय की निगरानी में विशेष जांच दल या सीबीआई से जांच के लिये दायर याचिका पर नौ जुलाई को केन्द्र, आंध्र प्रदेश और कंपनी से जवाब मांगा था।

केन्द्र सरकार के पूर्व सचिव सरमा ने अपनी याचिका में आरोप लगाया हैकि यह समूह खनन और विभिन्न प्रकार के खनिजों के निर्यात सहित कई गैरकानूनी और अवैध गतिविधियों में संलिप्त है। याचिका में कहा गया है कि इस तरह की गैरकानूनी गतिविधियों ने क्षेत्र का पर्यावरण और छायादार वृक्षों का दायरा नष्ट कर दिया है।

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