सीतापुर। सिधौली में श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन श्रीकृष्ण बाल लीला का सुंदर चित्रण किया। कथावाचक बाल व्यास शिवानंद जी महाराज ने भगवान कृष्ण बाल लीला, माखन चोरी व गोवर्धन पूजा की कथा कही। कहा कि भगवान की अद्भुत लीलाएं मानव जीवन के लिए प्रेरणा दायक हैं।

शिवानंद जी महाराज ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने अपने बाल्यकाल में अनेकों लीला किया है। प्यारे कृष्ण आपकी एक-एक लीला मनुष्यों के लिए परम मंगलमयी और कानों के लिए अमृतस्वरूप हैं। जिसे एक बार उस रस का चस्का लग जाता है, उसके मन में फिर किसी दूसरी वस्तु के लिए लालसा ही नहीं रह जाती। भगवान श्री कृष्ण ने गृह लीलाएं जब वे मात्र छह दिन के ही थे, तब चतुर्दशी के दिन पूतना आई, जब भगवान तीन माह के हुए तो करवट उत्सव मनाया गया तभी शकटासुर आया, भगवान ने संकट भंजन करके उस राक्षस का उद्धार किया।

इसी तरह बाल लीलाएं, माखन चोरी लीला, उखल बंधन लीला, यमलार्जुन का उद्धार आदि दिव्य लीलाए की। श्रीकृष्ण की प्रत्येक लीला दिव्य है और हर लीला का आध्यात्मिक है।

श्रीशुकदेवजी कहते हैं- “परीक्षित। नन्दबाबा जब मथुरा से चले, तब रास्ते में विचार करने लगे कि वासुदेवजी का कथन झूठा नहीं हो सकता। इससे उनके मन में उत्पात होने की आशंका हो गयी। तब उन्होंने मन-ही-मन ‘भगवान की शरण है, वे ही रक्षा करेंगे’ ऐसा निश्चय किया।

गोकुल में नन्दबाबा ने पुत्र का जन्मोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया। ब्राह्मणों और याचकों को यथोचित गौओं तथा स्वर्ण, धनादि का दान किया। कर्मकाण्डी ब्राह्मणों को बुलाकर बालक का जाति कर्म संस्कार करवाया। पितरों और देवताओं की अनेक भांति से पूजा-अर्चना की। पूरे गोकुल में उत्सव मनाया गया।

कुछ दिनों पश्चात् कंस ढूंढ-ढूंढ कर नवजात शिशुओं का वध करवाने लगा। उसने पूतना नाम की एक क्रूर राक्षसी को ब्रज में भेजा। पूतना ने राक्षसी वेष तज कर अति मनोहर नारी का रूप धारण किया और आकाश मार्ग से गोकुल पहुंच गई। गोकुल में पहुंच कर वह सीधे नन्दबाबा के महल में गई और शिशु के रूप में सोते हुये श्रीकृष्ण को गोद में उठाकर अपना दूध पिलाने लगी।

श्रीकृष्ण सब जान गये और वे क्रोध करके अपने दोनों हाथों से उसका कुच थाम कर उसके प्राण सहित दुग्धपान करने लगे। उसकी भयंकर गर्जना से पृथ्वी, आकाश तथा अन्तरिक्ष गूंज उठे। बहुत से लोग वज्रपात समझ कर पृथ्वी पर गिर पड़े। पूतना अपने राक्षसी स्वरूप को प्रकट कर धड़ाम से भूमि पर वज्र के समान गिरी, उसका सिर फट गया और उसके प्राण निकल गये।

जब यशोदा, रोहिणी और गोपियों ने उसके गिरने की भयंकर आवाज को सुना, तब वे दौड़ी-दौड़ी उसके पास गईं। उन्होंने देखा कि बालक कृष्ण पुतना की छाती पर लेटा हुआ स्तनपान कर रहा है तथा एक भयंकर राक्षसी मरी हुई पड़ी है। उन्होंने बालक को तत्काल उठा लिया और पुचकार कर छाती से लगा लिया। पुतना की मृत्यु और श्रीकृष्ण के कुशलपूर्वक बच जाने की बात सुनकर बड़े ही आश्चर्यचकित हुए।

भगवान कृष्ण ने बचपन में अनेक लीलाएं कीं। बाल कृष्ण सभी का मन मोह लिया करते थे। नटखट स्वभाव के चलते यशोदा मां के पास उनकी हर रोज शिकायत आती थी। मां उन्हें कहती थी कि प्रतिदिन तुम माखन चुरा के खाया करते हो तो वह तुरंत मुंह खोलकर मां को दिखा दिया करते थे कि मैने माखन नहीं खाया।

शिवानंद जी महाराज ने कहा कि भगवान कृष्ण अपनी सखाओं और गोप-ग्वालों के साथ गोवर्धन पर्वत पर जाते थे। वहां पर गोपिकाएं 56 प्रकार का भोजन रखकर नाच गाने के साथ उत्सव मना रही हैं। कृष्ण के पूछने पर उन्होंने बताया कि आज के दिन ही व्रसासुर को मारने वाले तथा मेघों व देवों के स्वामी इंद्र का पूजन होता है। इसे इंद्रोज यज्ञ कहते हैं। इससे प्रसन्न होकर इन्द्र ब्रज में वर्षा करते हैं जिससे प्रचुर अन्न पैदा होता है। भगवान कृष्ण ने कहा कि इन्द्र में क्या शक्ति है। उनसे अधिक शक्ति शाली तो हमारा गोवर्धन पर्वत है। इसके कारण ही वर्षा होती है अतः हमें इंद्र से बलवान गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए। बहुत विवाद के बाद श्री कृष्ण की यह बात मानी गई और ब्रज में गोवर्धन पूजा की तैयारियां शुरू हो गई।

कथाव्यास ने कहा कि परमात्मा से जुड़ जाना ही सच्ची भक्ति है। यही धर्म भी है। आज इंसान प्रभु से विभक्त होने के कारण ही दुखी है। बिना भाव के भगवान कीमती चीजों को भी ग्रहण नहीं करते। यदि भाव से एक फूल ही चढ़ा दें तो प्रभु प्रसन्न हो जाते हैं। जिस व्यक्ति में ईश्वर प्रेम का भाव पैदा हो जाए तो उसे ईश्वर की लगन लगी रहती है।

शिवानंद जी महाराज ने कहा कि बुधवार को महारास लीला, उद्धव गोपी संवाद, रूकमणि व कृष्ण विवाह पर कथा सुनाई जाएगी। इस अवसर पर क्षेत्र के गणमान लोग उपस्थित रहे।

https://www.youtube.com/watch?v=cDcRSTyYGCg&t=142s

 

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