2024 में सड़क हादसों से मौतों की संख्या और बढ़ने का अनुमान: रिपोर्ट
नई दिल्ली। देश में सड़क दुर्घटनाओं का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की ताज़ा रिपोर्ट ने एक बार फिर चौंकाने वाले आंकड़े सामने रखे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, 2023 की तुलना में 2024 में सड़क हादसों से मौतों की संख्या और बढ़ने का अनुमान है।
2023 में देशभर में 1 लाख 73 हजार लोगों की जान सड़क दुर्घटनाओं में गई थी, जो अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा था। वहीं, 2024 के प्रारंभिक अनुमानों से संकेत मिलते हैं कि यह संख्या और अधिक बढ़ सकती है।
NCRB रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, ओडिशा, तेलंगाना, असम और दिल्ली सड़क दुर्घटनाओं से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य हैं।
इन राज्यों में 2023 की तुलना में हादसों की संख्या में बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जबकि पश्चिम बंगाल ऐसा इकलौता राज्य रहा जहां इस दौरान थोड़ी कमी देखने को मिली।
पश्चिम बंगाल में 2023 में 6,027 लोगों की जान गई थी, लेकिन राज्य ने अब तक 2024 के आंकड़े साझा नहीं किए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि यह आंकड़ा सामने आता है, तो देश में सड़क हादसों से मौत का कुल आंकड़ा 2024 में और भी बढ़ सकता है।
| राज्य | 2023 | 2024 |
| उत्तर प्रदेश | 23,652 | 24,118 |
| तमिलनाडु | 18,347 | 18,449 |
| महाराष्ट्र | 15,366 | 15,715 |
| मध्य प्रदेश | 13,798 | 14,791 |
| कर्नाटक | 12,321 | 12,390 |
| राजस्थान | 11,762 | 11790 |
| बिहार | 8,873 | 9,347 |
| आंध्र प्रदेश | 8,137 | 8,346 |
| तेलंगाना | 7,660 | 7,949 |
| ओडिशा | 5,739 | 6,142 |
पिछले वर्षों के औसत आंकड़ों के अनुसार, देश में हर दिन करीब 470 से अधिक लोग सड़क दुर्घटनाओं में अपनी जान गंवाते हैं। इनमें अधिकतर हादसे ओवरस्पीडिंग, शराब पीकर गाड़ी चलाने और हेलमेट/सीट बेल्ट न लगाने के कारण होते हैं।
परिवहन मंत्रालय के अनुसार, भारत में हर साल करीब 5 लाख सड़क दुर्घटनाएं होती हैं, जिनमें 1.7 लाख से अधिक लोगों की मौत और 4 लाख से ज्यादा लोग घायल होते हैं।
सड़क सुरक्षा को लेकर सरकार ने हाल के वर्षों में कई कदम उठाए हैं।
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मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम 2019 के तहत भारी जुर्मानों का प्रावधान किया गया।
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ब्लैक स्पॉट्स की पहचान कर सड़क डिजाइन सुधार पर ज़ोर दिया गया।
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स्मार्ट ट्रैफिक सिस्टम, इंटेलिजेंट सिग्नलिंग और सेफ्टी ऑडिट लागू किए जा रहे हैं।
फिर भी, ज़मीन पर इन प्रयासों का असर सीमित दिखता है। विशेषज्ञों का मानना है कि सड़क सुरक्षा केवल कानूनों से नहीं बल्कि व्यवहारिक बदलावों से संभव है।
NCRB रिपोर्ट के अनुसार, 9 राज्यों में सड़क हादसों से हुई मौतों में कमी आई है। इसमें केरल और गुजरात जैसे राज्य भी शामिल हैं, जहां सड़क सुरक्षा अभियानों और यातायात अनुशासन को लेकर निरंतर प्रयास किए गए हैं। हालांकि, यह कमी राष्ट्रीय औसत के मुकाबले बहुत मामूली है और कुल मिलाकर देश में सड़क हादसे अब भी एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बने हुए हैं।
परिवहन विशेषज्ञों का कहना है कि सड़क हादसों की बढ़ती संख्या सिर्फ यातायात व्यवस्था की कमजोरी नहीं, बल्कि सामाजिक लापरवाही का भी परिणाम है।
दिल्ली के ट्रांसपोर्ट रिसर्चर डॉ. अनिल रंजन के अनुसार, “भारत में हर साल सड़क हादसों से जितनी मौतें होती हैं, उतनी संख्या कई देशों में पूरे साल में नहीं होती। जरूरत है कि इसे कानून प्रवर्तन से आगे बढ़कर सामाजिक जिम्मेदारी के रूप में लिया जाए।”
सड़क हादसों के आंकड़े भारत के विकास के साथ चल रही एक गहरी सच्चाई को उजागर करते हैं — तेज रफ्तार विकास के साथ सुरक्षा की धीमी रफ्तार। अगर समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो सड़कें सिर्फ सफर का नहीं बल्कि खतरे का प्रतीक बनती जाएंगी।
