नई शिक्षा नीति-2020 में भारत की क्षेत्रीय भाषाओं में अध्ययन-अध्यापन पर जोर है। शिक्षा समागम में शिक्षाविदों ने यह मुद्दा भी उठाया कि इन भाषाओं में गुणवत्तायुक्त शैक्षणिक सामग्री के बिना शिक्षण कैसे होगा। भारतीय भाषा और ज्ञान परंपरा सत्र की अध्यक्षता कर रहे पद्मश्री प्रो. चमू कृष्ण शास्त्री ने बताया कि इसके लिए 75 भाषाओं का अनुवाद करने और इन्हें सिखाने वाला एप तैयार किया जा रहा है।

रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में शुक्रवार को सात सत्रों में मंचासीन 35 शिक्षाविदों के साथ ही ऑडिटोरियम में मौजूद 300 से ज्यादा कुलपतियों ने कई विषयों पर मंथन किया। इन सभी सत्रों में राज्यपाल आनंदीबेन पटेल और केन्द्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान मौजूद रहे। शनिवार के अंतिम सत्र में तीन दिनों का निष्कर्ष पेश करने के साथ वाराणसी से उच्च शिक्षा का घोषणा पत्र जारी किया जाएगा।

प्रो. चमू कृष्ण शास्त्री ने बताया कि भारत सरकार की ‘शब्दशाला’ योजना जल्द आने वाली है। इसमें सभी भाषाओं के 10 लाख से ज्यादा शब्दों का भंडार युवाओं के लिए मददगार होगा। सुबह के पहले सत्र में आईआईएस बेंगलुरु के निदेशक प्रो. जी. रंगराजन की अध्यक्षता में ‘अनुसंधान, नवाचार और इंटरप्रेन्योरशिप’ पर चर्चा हुई। विद्वानों ने माना कि शोध और अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए अनुकूल वातावरण विकसित करने की जरूरत है। ‘गुणवत्ता, रैकिंग और प्रत्यायन’ विषयक तीसरे सत्र में पटना विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. गिरीश कुमार चौधरी ने तकनीकी-गैर तकनीकी के साथ संसाधन संपन्न और नए संस्थानों का सवाल उठाया। उन्होंने सुझाव दिया कि ऐसे संस्थानों की रैकिंग और रेटिंग के लिए क्षेत्र, विषय, छात्रसंख्या और संसाधनों के आधार पर मानक तय होना चाहिए। सत्र के अध्यक्ष प्रो. केके अग्रवाल ने भी इस पर सहमति जताई।

शुक्रवार के अंतिम सत्र की अध्यक्षता दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने की। पैनल में डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर विश्वविद्यालय अहमदाबाद की कुलपति प्रो. अमि उपाध्याय और लखनऊ विवि के कुलपति प्रो. आलोक राय रहे। काशी विद्यापीठ, पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ विश्वविद्यालय सहित कई संस्थान प्रमुखों ने अपने यहां किए नए प्रयोगों को साझा किया। शनिवार को कुल चार सत्रों में कौशल विकास व उद्यमिता, शिक्षा के अंतरराष्ट्रीयकरण, सफलता की कहानियों के सत्र होंगे।

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