लखनऊ में विवेक तिवारी की हत्या की प्रत्यक्षदर्शी सना ख़ान को पुलिस ने शुरू में मीडिया से बात नहीं करने दी मगर बाद में दबाव पड़ा तो उन्हें पत्रकारों के सामने लाया गया.

सना ने इस घटना को पुलिसकर्मियों को ज़िम्मेदार ठहराते हुए कहा, “न तो हम रुके हुए थे और न ही आपत्तिजनक अवस्था में थे. हमारी ओर से कोई उकसावा नहीं था मगर कॉन्स्टेबल ने गोली चला दी.”

सना ख़ान ने पत्रकारों से कहा, “हम कार्यक्रम से निकले और सर ने कहा कि वह मुझे घर छोड़ देंगे. मक़दूमपुर पुलिस पोस्ट के पास बाईं ओर से दो पुलिसवाले कार के बराबर आकर चलने लगे. वे चिल्लाए- रुको. मगर सर गाड़ी चलाते रहे क्योंकि रात का समय था और उन्हें मेरी सुरक्षा की चिंता भी थी.”

सना ने दिल को दहला देने वाली इस घटना के बारे में बताया, ” रात में हम घर जा रहे थे. इसी बीच सामने से पुलिस वाले आए और उनकी गाड़ी को जबर्दस्‍ती रोकने लगे. सर (विवेक तिवारी) ने गाड़ी नहीं रोकी. उन्‍होंने सोचा कि पता नहीं कौन है जो इतनी रात को रोक रहा है और हम अकेले हैं.

तभी इनमें से एक कॉन्स्टेबल बाइक से उतरा और लाठी से गाड़ी पर वार करना शुरू कर दिया मगर सर ने कार नहीं रोकी. दूसरे ने गाड़ी को ओवरटेक किया और 200 मीटर आगे जाने के बाद सड़क के बीच में बाइक रोक दी और हमें रुकने को कहा.

हमारी कार कम गति से आगे बढ़ रही थी और फिर गाड़ी रोक दी. तभी कॉन्स्टेबल ने अपनी बंदूक़ निकाली और सामने से सर पर गोली चला दी. जो विवेक की ठोड़ी पर जा लगी. इसके बाद दोनों पुलिस वहां से फरार हो जाते हैं. सर बेहोश होकर ड्राइविंग सीट पर गिर गए.

सर ने गाड़ी पर नियंत्रण खो दिया और वह आगे चलकर खंबे से टकराकर रुक गई. इसके बाद वह एसयूवी से बाहर निकली और मदद की गुहार लगाने लगी.  कल मैं फोन ले जाना भूल गई थी और मैंने कई लोगों से मदद मांगी कि वे अपना फोन दे दे.

मैं रोड पर चिल्‍ला रही थी कि कोई अपना फोन दे दो लेकिन किसी ने मदद नहीं की. मैंने ट्रक ड्राइवरों को रोकने की कोशिश की. बाद में गाड़ी पर गश्त लगा रहे पुलिसकर्मियों ने हमें देखा और उनसे सर को अस्पताल ले जाने की गुज़ारिश की.”

 

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