नयी दिल्ली, दिल्ली उच्च न्यायालय ने आज राष्ट्रीय राजधानी में भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया और कहा कि इस कृत्य को दंडित करने के प्रावधान असंवैधानिक हैं और उन्हें रद्द किया जाना चाहिए।

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की एक पीठ ने कहा कि इस फैसले का अपरिहार्य नतीजा यह होगा कि इस अपराध के कथित आरोपी के खिलाफ बंबई के भीख मांगना रोकथाम कानून के तहत लंबित मुकदमा रद्द किया जा सकेगा।

अदालत ने कहा कि इस मामले के सामाजिक और आर्थिक पहलू पर अनुभव आधारित विचार करने के बाद दिल्ली सरकार भीख के लिए मजबूर करने वाले गिरोहों पर काबू के लिए वैकल्पिक कानून लाने को स्वतंत्र है।

अदालत ने 16 मई को पूछा था कि ऐसे देश में भीख मांगना अपराध कैसे हो सकता है जहां सरकार भोजन या नौकरियां प्रदान करने में असमर्थ है। उच्च न्यायालय भीख को अपराध की श्रेणी से हटाने की मांग वाली दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था।

केंद्र सरकार ने कहा था कि बंबई के भीख मांगने पर रोकथाम कानून में पर्याप्त संतुलन है। इस कानून के तहत भीख मांगना अपराध की श्रेणी में है। हर्ष मंडर और कर्णिका साहनी की जनहित याचिकाओं में राष्ट्रीय राजधानी में भिखारियों के लिए मूलभूत मानवीय और मौलिक अधिकार मुहैया कराए जाने का अनुरोध किया गया था। याचिकाकर्ताओं ने बंबई के भीख मांगने पर रोकथाम कानून को भी चुनौती दी है।

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