कारागार अधिकारियों के विवाद को सुलझाने के लिए बंदियों ने मांगा ‘फट्टा’

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लखनऊ। बीते दिनों कारागार मुरादाबाद में जेल वरिष्ठ जेल अधीक्षक रिजवी के साथ जेलर रीवन सिंह का बाद विवाद हो गया था। कारागार मुरादाबाद के अंदर हुए इस विवाद की आग की आंच शासन तक पहुंच गई। शासन स्तर के अफसर भी इस मामले को लेकर गंभीर हैं। मामले में एडीजी कारागार ने हस्तक्षेप करते हुए डीआइजी बरेली को पूरे मामले की जांच सौंपी है। डीआईजी ने कारागार ने पहुंचकर अफसरों और कर्मचारियों के बयान दर्ज किए थे। डीआईजी ने बंदियों से भी पूंछतांछ की थी।

बंदियों से पूंछतांछ के दौरान के एक बंदी ने कहा कि कारागार में बंदियों के बीच जब कभी लड़ाई-झगड़ा होता है तो कारागार के अधिकारियों के द्वारा दोनों पक्षों को बांधकर ‘फट्टों’ से पीटा जाता है। यही यहां का कानून है जो कि स्वयं अधिकारियों ने बनाया है। अगर यह कानून बंदियों पर लागू होता है तो यह अधिकारियों पर भी लागू होना चाहिए। अब कारागार के बंदियों को ‘फट्टा’ दिया जाये ताकि अधिकारियों को भी खुद के बनाए कानून की याद दिलाई जा सके।

हालांकि विवाद की जांच रिपोर्ट शासन को नहीं भेजी गई है। वहीं अधिकारियों के विवाद के बाद बंदियों के दो ग्रुपों में भी जमकर विवाद हुआ, हालांकि मौके पर मौजूद बंदी रक्षकों ने मामले को शांत कराया। कारागार में अधिकारियों ही नहीं बंदियों में भी गुटबंदी साफ दिखाई दे रही है।

ज्ञात हो कि शासन स्तर पर नियम विरूद्व किए गए स्थानांतरण को लेकर भी बहुत से अफसर असंतुष्ट हैं। जिसके कारण वह जेल में अनुशासन को लेकर गंभीर नहीं हैं।

विवाद की वजह

नाम न छापे जाने के शर्त पर कारागार के एक अधिकारी ने बताया कि विवाद वाले दिन कुछ बंदी पेशी से जब लौटे से वह शराब पीये हुए थे।बंदियों के शराब पीने को लेकर जेलर रीवन सिंह ने वरिष्ठ जेल अधीक्षक रिजवी को दरकिनार करते हुए मुरादाबाद के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को पत्र लिख दिया। पत्र के संबंध में वरिष्ठ जेल अधीक्षक रिजवी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के बीच वार्ता हुई तो वरिष्ठ जेल अधीक्षक रिजवी ने अनभिगता जाहिर की और समुचित उत्तर नहीं दे सके। जिसके बाद वरिष्ठ जेल अधीक्षक रिजवी और जेलर रीवन सिंह में कहा सुनी हो गई।

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जेलों में पैसा बरसता है। मुरादाबार जेल का नाम भी अवैध कमाई के मामले में टॉप टेन में है। यहां पोस्टिंग के पाने के लिए सूबे के अधिकारी लाखों रूपये लेकर खड़े रहते हैं।

जेलर रीवन सिंह पूर्व में जेल अधीक्षक के पद से रिवर्ड होकर जेलर होने के कारण अपने आप को आज तक जेलर नहीं मान सके हैं। वह स्वयं को आज भी जेल अधीक्षक मानते हैं। इसलिए स्वाभाविक है कि जेल अधीक्षक से विवाद होगा। जेलर रीवन सिंह जेल के अंदर सिक्का चलता है। वह स्वयं को अधीक्षक के अधीन नहीं मानते हैं।

जेलर रीवन सिंह एक विशेष जाति वर्ग के बंदियों, बंदीरक्षकों और उप जेलरों मिला गुटबाजी करते हैं। जातिवाद का जाल फैलाना इन्हें अच्छी तरह से आता है। अधिकारियों से झगड़ा करना और उन्हें कोर्ट में घसीटने की कला में भी यह माहिर हैं।

साढ़े छह सौ बंदियों की क्षमता वाली जेल में तीन हजार से ज्यादा कैदी

कारागार में बीते दो माह में बंदियों की संख्या में भी इजाफा हुआ है। दो माह पूर्व तक बंदियों की संख्या लगभग ढाई हजार के करीब थी, लेकिन अब यह संख्या बढ़कर साढ़े तीन हजार के करीब पहुंच रही है। वहीं कारागार की क्षमता मात्र साढ़े छह सौ बंदियों की है।

बदहाली में भी आगे मुरादाबाद जेल

कारागार प्रशासन की माने तो क्षमता से अधिक बंदियों के होने के कारण आये दिन बंदियों के बीच झगडे़ होते रहते हैं। गुटबाजी के कारण कई बार तो पुलिस वालों को ही अपमानित होना पड़ता है। बीते दिनों पेशी से लौटे एक बंदी ने एक दरोगा को झापड़ मारा। एक बंदी ने तो एक दरोगा के ऊपर थूक दिया। कैदियों द्वारा पुलिस को गालियां सुनाना तो आम बात हो गई है।

कारागार में वरिष्ठ अधिकारी और जेलर के बीच हुए वादविवाद की जानकारी मिलने पर डीआईजी बरेली को जांच के आदेश दिए गए थे। जांच रिपोर्ट मिलने के बाद दोषी अफसर के खिलाफ कार्रवाई तक की जाएगी। जेल में अनुशासन को लेकर लापरवाही नहीं होनी चाहिए।
चंद्रप्रकाश, एडीजी, कारागार

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