लखनऊ। 1 जुलाई 2017 को भारत सरकार करों में पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए, समग्र कर भार में राहत, कदाचार पर रोक लगाने के लिए पूरे देश में एक ही अप्रत्यक्ष कर प्रणाणी लागू की गई। इस कर व्यवस्था को लागू करने के लिए भारतीय संविधान में संशोधन किया गया।

एक सितंबर 2019 को भारत सरकार ने केंद्रीय उत्पाद शुल्क एवं सेवा कर (CGST) संबंधित पूर्ववर्ती कर विवदों के निस्तारण के लिए ‘सबका विश्वास विरासत विवाद समाधान योजना‘ (SVLDRS) नामक आकर्षक योजना लायी थी। इस योजना का उद्देश्य करदाताओं को अपने पूर्ववती कर विवादों से करदाताओं की श्रेणी के आधार पर निश्चित कर राशि, पूर्ण ब्याज और जुर्माने की छूट के साथ केवल एक निश्चित कर राशि का भुगतान कर मुक्त होने का अवसर प्रदान किया गया था।

SVLDRS योजना के माध्यम से CGST के भ्रष्ट अधिकारियों को भ्रष्टाचार करने का मौका मिल गया। CGST के भ्रष्ट अधिकारियों ने SVLDRS योजना का लाभ कुछ कंपनियों को रेवड़ियों की तरह बांट दिया।

लखनऊ की एक कंपनी अपनाटेक कंसल्टेंसी सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड को भी इसी प्रकार से गलत श्रेणी में दिखाकर लाभ पहुंचाया गया। इस प्रकरण की विभागीय जांच चल रही है।

ताजा मामला SVLDRS योजना के माध्यम से CGST के भ्रष्ट अधिकारियों ने लखनऊ विकास प्राधिकरण (LDA) को गलत श्रेणी में दिखाकर टैक्स में छूट देकर अनुचित तरीके से लाभ पहुंचाया गया।

LDA को लाभ पहुंचाने के चक्कर में सीजीएसटी अधिकारियों ने भारत सरकार का 207 करोड़ का नुकसान करा दिया।

इस मामले से सभी का ध्यान भटकाने के लिए CGST के भ्रष्ट अधिकारियों ने अधीनस्थ अधिकारियों को भारत सरकार को नुकसान पहुंचाने के लिए सम्मानित किया।
भारत के इतिहास में शायद यह पहला मामला होगा कि किसी अधिकारी को भ्रष्टाचार करने व भारत सरकार को नुकसान पहुंचाने के मामले में सम्मानित किया गया होगा।

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार SVLDRS योजना के अंतर्गत समाधान राशि को तय करने की जिम्मेदारी CGST के तत्कालीन प्रधान आयुक्त महंद्र रंगा और अपर आयुक्त विवेक कुमार जैन जैसे बड़े अफसरों को सौपी गयी थी।

एक सितम्बर 2019 से लागू इस योजना के लिए आवेदन की अंतिम तिथि 15 जनवरी 2020 रखी गयी थी। मुकदमे में फंसी कर राशि और बकाया राशि के समाधान के नियम अलग-अलग बनाए गए थे। 30 जून 2019 तक लंबित मुकदमों और बकाया राशि के मामलों में अफसरों ने मनमाफिक खेल किये।

LDA को 800 करोड़ के बकाया कर को चुकाने के लिए 2010 से 2017 के बीच चार नोटिस CGST द्वारा जारी किए गए थे। जिसका निस्तारण लंबित मुकदमों की कैटेगरी में किया जाना था। LDA को समाधान योजना में आवेदन करने पर नोटिस की राशि अर्थात रूपया 800 करोड़ में समाधान मिलना था। इसमें ब्याज व दंड को माफ करने पर मांग राशि का 50 प्रतिशत अर्थात 400 करोड़ रूपयों का भुगतान CGST को किया जाना था।

एलडीए अफसरों से साठगांठ होने के बाद CGST के भ्रष्ट अफसरों ने नियम विरूद्व तरीके से पहले तो योजना की अंतिम तिथि में 800 करोड़ की नोटिस को में टैक्स निर्धारण करके आदेश पारित किया। उसके बाद 317 करोड़ अंतिम देय राशि कर डाली।

LDA को मुकदमे में लम्बित स्थिति में समाधान न देकर कम की गयी। कर राशि पर लाभ देकर फर्जीवाड़े को अंजाम दिया गया।
LDA से चार सौ करोड़ की जगह सिर्फ 176 करोड़ की राशि ही सेवाकर के रूपये में जमा कराई गई। भारत सरकार को सीधे तौर पर CGST के भ्रष्ट अफसरों ने 207 करोड़ के राजस्व का नुकसान पहुंचाया गया।

 

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