लंदन, किसी हिंदी उपन्यास के लिए अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय लेखिका गीतांजलि श्री के लिए इस प्रतिष्ठित पुरस्कार को पाने से पहले का सफर काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा।

श्री के मूल उपन्यास का नाम ‘रेत समाधि’ है और इसका अंग्रेजी संस्करण है ‘टॉम्ब ऑफ सैंड’। इसका अनुवाद डेजी रॉकवेल ने किया है।

पुरस्कार की घोषणा होने के बाद से श्री और रॉकवेल को दुनिया भर से बधाई संदेश मिल रहे हैं और दोनों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं है। इस पुरस्कार के बाद से हिंदी साहित्य भी चर्चा के केंद्र में बना हुआ है, लेकिन लेखिका का मानना है कि इस लय को बनाए रखने के लिए कुछ गंभीर प्रयासों की आवश्यकता होगी।

श्री ने कहा, ‘‘इसके (पुरस्कार की घोषणा के) तत्काल बाद से हिंदी साहित्य की लोकप्रियता बढ़ाने में निश्चित ही मदद मिली है। इसमें रुचि और उत्सुकता पैदा हुई है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘बहरहाल, हिंदी को केंद्र में लाने के लिए अधिक गंभीरता से सतत एवं संगठित प्रयास करने की आवश्यकता है। इसमें प्रकाशकों को, खासकर इस प्रकार के साहित्य का अच्छा अनुवाद मुहैया कराने में अहम भूमिका निभानी होगी। मैं इस बात पर जोर देना चाहती हूं कि यह बात केवल हिंदी ही नहीं, बल्कि सभी दक्षिण एशियाई भाषाओं पर लागू होती है।’’

यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें इस बात का डर है कि भारत में अंग्रेजी किसी तरह से हिंदी पर हावी हो सकती है, लेखिका ने कहा कि किसी एक का चुनाव करने का सवाल नहीं होना चाहिए, क्योंकि भाषाओं में एक दूसरे को समृद्ध बनाने की क्षमता है।

श्री ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि हिंदी या अंग्रेजी में से किसी एक के चयन का सवाल नहीं होना चाहिए। द्विभाषी या त्रिभाषी या बहुभाषी होने में समस्या क्या है?’’

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि मनुष्यों में एक से अधिक भाषा को जानने की क्षमता है। हमारी ऐसी शिक्षा प्रणाली होनी चाहिए, जो लोगों को अपनी मातृ भाषा या अन्य भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी को जानने के लिए प्रोत्साहित करे, इसमें समस्या क्या है, लेकिन इसके राजनीति में घिर जाने से यह एक तरह की अनसुलझी समस्या बन गया है।’’

64 वर्षीय लेखिका का मानना है कि रचनात्मक अभिव्यक्ति तभी श्रेष्ठ होती है, जो व्यक्ति के लिए सबसे सहज भाषा में की जाए।

बेतहरीन अनुवादक रॉकवेल को अपने कॉलेज के दिनों से ही हिंदी से प्रेम हो गया था और वह ‘रेत समाधि’ को ‘‘हिंदी भाषा के प्रेम पत्र’’ की तरह देखती हैं।

रॉकवेल ने कहा, ‘‘यह खुशी की बात है कि जिस किताब की बुकर के न्यायमंडल ने ‘‘भारत और बंटवारे का दीप्तिमान उपन्यास’’ करार देकर प्रशंसा की, उसे कई द्विभाषी पाठकों ने दोनों भाषाओं में साथ पढ़ा, ताकि उसका पूरा आनंद लिया जा सके।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे खुशी है कि कई लोग दोनों को साथ में पढ़ रहे हैं। मुझे लगता है कि यही अनुवाद का असल महत्व है, जब यह लोगों को मूल को पढ़ने के लिए उत्सुक करता है।’’

रॉकवेल ने कहा, ‘‘मूल शीर्षक समाधि के कई अर्थ हैं। यह बहुत समृद्ध शब्द है, इसलिए उन्हें (श्री को) लगा कि इसका ‘टॉम्ब’ अनुवाद करने से यह समृद्ध शब्द खो जाएगा… लेकिन मैंने वादा किया कि मैं पूरे पाठ में इस शब्द को समाहित करूंगी।’’

तीन उपन्यासों और कई कहानी संग्रहों की लेखिका श्री ने यह नहीं बताया कि अब क्या लिख रही हैं, लेकिन उन्होंने बताया कि उनकी अगली रचना प्रकाशक को सौंपे जाने के लिए लगभग तैयार है।

3 thoughts on “हिंदी साहित्य को केंद्र में लाने के लिए सतत प्रयासों की आवश्यकता: गीतांजलि श्री”
  1. It’s trulyy very complicated inn this full of acftivity life too listen nes oon Television, tjerefore I simply use injternet for that reason, annd tke thhe hottet news.

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