लखनऊ। जेल, यानी कैदियों का सुधार गृह। ऐसी जेलों को सुधारने का काम करते आ रहे हैं जेलर अंजनी कुमार गुप्ता। जो आजकल बलिया जिला जेल के जेलर हैं। जिस तरह उन्होंने मात्र दो माह के अपने सेवाकाल में बलिया जिला जेल में सुधार किया है वह सराहनीय है। जेलर अंजनी कुमार गुप्ता कैदियों के बीच स्वभाव सुधार के लिए काम कर रहे हैं।
बलिया जिला जेल के जेलर अंजनी कुमार गुप्ता की एक आदत है कि वे जेल कैदियों से मित्रवत व्यवहार रखते हैं और बौद्धिक आयोजन कराते रहते हैं। जेल में संतों के बौद्धिक आयोजन, नशा मुक्ति शिविर, बच्चों के कार्यक्रम, न्यायाधीशों के विधिक सहायता शिविर व इसी प्रकार के अन्य आयोजन कराना इनकी आदत में है। इसके अलावा जेल में अन्य छोटे-छोटे कार्य भी कराए जा रहे हैं।
जेलर अंजनी कुमार गुप्ता ने बताया कि बलिया का यह वही ऐतिहासिक जेल है, जिसमें स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चित्तू पांडेय सहित तमाम क्रांतिकारी बंद थे। आजादी की जंग के समय 19 अगस्त सन् 1942 को बलिया के क्रांतिकारियों की बदौलत ही जेल का फाटक पूरी तरह खोलना पड़ा था और सभी क्रांतिकारी जेल से बाहर आए थे.. तब बलिया को देशभर में सबसे पहले आजाद होने का गौरव प्राप्त हुआ। भारतीय इतिहास में वह दिन स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। उसी घटना की याद में प्रतिवर्ष 19 अगस्त को इस जेल का फाटक खुलता है। इस दौरान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा सामाजिक कार्यकर्ता क्रांतिकारियों की तरह जेल के अंदर जाकर – बाहर आने की उस परंपरा का निर्वाह करते हैं।
यह जेल सौ वर्षों से भी ज्यादा पुरानी हो चुकी है। 1917 में बनी इस जेल में न तो कभी कोई खास मरम्मत हुई और न ही समय के साथ इसमें कोई बदलाव किया गया था।
जेलर अंजनी कुमार गुप्ता बलिया जिला कारागार को ऐतिहासिक धरोहर बताते हुए कहते हैं कि यह जेल शहीद पं.रामरेखा शर्मा, शहीद महानंद मिश्र, शहीद राम लक्ष्मण चैबे, शहीद नगीना व शहीद परमेश्वर बारी सरीखे सैकड़ों क्रांतिकारियों की स्मृतियों को संजोए है। इस जेल की हर स्तर पर हिफाजत करनी चाहिए कितु यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मेरे आने के पहले यह जेल दुर्दशा का शिकार थी।