नयी दिल्ली, सुबह उठना, ऑफिस की आपाधापी और फिर शाम को घर वापसी, वर्षों के इस रूटीन को लॉकडाउन ने एकदम बिगाड़ दिया है और अब घर में बैठे-बैठे हम ना सिर्फ तमाम तरह की बातें सोच रहें हैं बल्कि देर रात तक अपने मोबाइल, लैपटॉप और टीवी पर कुछ ना कुछ देख रहे हैं। इन सभी ने मिलकर हमारी नींद खराब कर दी है।

कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए देश में लागू लॉकडाउन का नौवां सप्ताह है और अपने घरों में बंद लोग तनाव तथा बेचैनी जैसी परेशानियों के शिकार हो रहे हैं जिसके शुरुआती लक्षण के तौर पर निद्रा चक्र से जुड़ी दिक्कतें सामने आ रही हैं।

कुछ ही हालत ऐसी है कि तमाम चिंताओं के कारण उनकी नींद उड़ गयी है तो, कुछ ऐसे भी जो हद से ज्यादा सो रहे हैं। कुछ लोग दोनों ही समस्याओं से एक साथ जूझ रहे हैं।

मेडिकल विशेषज्ञों का कहना है कि निद्रा चक्र में गड़बड़ी होने से जुड़े मामलों पर सलाह के लिए आने वाली फोन कॉल 25 मार्च से लागू लॉकडाउन के दौरान बढ़ी हैं।

राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और स्नायु विज्ञान संस्थान (निमहंस) के न्यूरोसाइकोलॉजिस्ट गुलशन कुमार का कहना है, ‘‘लोग तमाम अनिश्चितताओं और असुरक्षा की भावना के साथ जी रहे हैं। स्वास्थ्य, रोजगार और वित्तीय सुरक्षा की चिंता करने के साथ-साथ घर के काम और दफ्तर की जिम्मेदारियां भी उठा रहे हैं और चूंकी यह सब कुछ घर पर रहते हुए कर रहे हैं जिससे नींद की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है।

उन्होंने बताया कि बेंगलुरु स्थित निमहांस को लॉकडाउन शुरू होने के बाद से निद्रा संबंधी दिक्कतों जैसे अनिद्रा या इन्सोम्निया (नींद कम आना या नहीं आने की दिक्कत) को लेकर काफी कॉल आ रही हैं।

वेकफिट डॉट को द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के दौरान यह बात सामने आयी है कि इसमें शामिल हुए 1,500 लोग में से 44 प्रतिशत लॉकडाउन के दौरान विभिन्न कारणों से छह घंटे से कम की नींद ले रहे हैं।

बेंगलुरु की इस कंपनी का कहना है कि 25 मार्च को लॉकडाउन लागू होने से पहले महज 26 प्रतिशत लोगों को निद्रा संबंधी दिक्कत थी। कंपनी का कहना है कि इस दौरान कई लोगों ने अनिद्रा, नींद की कमी की शिकायत की है जबकि कई लोग जरुरत से ज्यादा सोने का इलाज करा रहे हैं।

वहीं दिल्ली विश्वविद्यालय में फिलॉसफी की प्रोफेसर गगनजोत कौर जैसे लोग भी हैं जो कई-कई रात सो नहीं पाते हैं। लेकिद कई बार उनकी नींद 10 घंटे से पहले नहीं खुलती है, लेकिन इतना सोने के बावजूद थकान नहीं जाती।

33 वर्षीय प्रोफेसर का कहना है कि उन्हें याद नहीं आ रहा है कि पिछले दो महीने में कब वह चैन की नींद सोई थीं।

वह कहती हैं, ‘‘ऐसा नहीं है कि मैं जान-बूझ कर जागती रहती हूं। मैं सोती हूं लेकिन रात तीन बजे अकारण ही नींद खुल जाती है। ऐसा लगता है जैसे मेरे दिमाग को एहसास ही नहीं है कि शरीर को कितनी नींद चाहिए।’’

कौर कहती हैं कि कुछ साल पहले उन्हें ‘जनरल ऐंक्जाइटी डिसऑर्डर’ होने का पता चला था। वह इलाज करा रही थीं, लेकिन पिछले दो महीने में उनकी दिक्कत बढ़ी है।

वहीं अगर प्रियंका दास की बात करें तो एकदम ठीक रात 11 बजे सोकर सुबह पांच बजे उठने वाली महिला को अब शाम सात बजते ही आंखें खुली रखने के लिए मेहनत करनी पड़ती है।

उनका कहना है, ‘‘शाम को मैं सो जाती, करीब दो तीन घंटे के लिए, सात से नौ बजे तक और बाद में पूरी रात जागती रहती हूं।’’

मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ प्रकृति पोद्दार का कहना है कि लोगों का वर्षों से सोच-समझ कर बनाया गया रोज का रूटीन इस लॉकडाउन में गड़बड़ हो गया है।

वह कहती हैं, ‘‘ऐसे में जब सभी घर में हैं, रूटीन बदल गया है। लोगों को थोड़ा अवसादग्रस्त होना, तनाव होगा और नींद में दिक्कत आना संभव है।’’

इस संबंध में दोनों ही डॉक्टरों की सलाह है कि आप अपना रूटीन बनाए रखें। देर रात तक ना जगें। अपनी नींद का समय ना बदलें। व्यायाम करें, योग, आसन और प्रणयाम करें, संगीत सुनें और अपने पसंद का काम करें ताकि आपके दिमाग को शांति मिले।

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