तम्बाकू का सेवन किसी न किसी रूप प्राचीनकाल से चला आ रहा है, पहले लोग तम्बाकू की पत्तियां मसलकर चबाया करते थे। तम्बाकू का सेवन हुक्के के रूप में किया करते थे। चोपाल पर बैठकर हुक्का गुडगुडाना पुराने समय का फैशन था। लोग तम्बाकू के पत्ते से बीड़ी बनाकर पीते थे। जैसे-जैसे समय निकलता गया, तम्बाकू के सेवन में परिवर्तन भी होता गया। तम्बाकू सेवन के लिए कई उत्पाद बनाए जाने लगे और इससे होने वाली लाखों-करोड़ों की आय को देखते हुए बड़ी-बड़ी कम्पनियां बाजार में आई। आज तम्बाकू का सेवन पान के साथ, गुटखे के रूप में एवं सिगरेट के रूप में व्यापकता से होने लगा है। तम्बाकू, गुटखे, खैनी, सिगरेट के साथ-साथ बीड़ी, गुटखा, जर्दा, किमाम, तम्बाकू वाला पान आदि के रूप में उपयोग में लिया जाता है।

तम्बाकू के प्रचलन ने फैशन का रूप ले लिया और किशोर उम्र से ही यह व्यसन होठों से लगकर शरीर की आवश्यकता बन जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि तम्बाकू चबाने से और सिगरेट पीने से मुंह, फेफड़े, गले, पेट, गुर्दे, मूत्राशय एवं यकृत का कैंसर, जबड़ों का बंद होना, दिल की बीमारी, मसूढ़ों की बीमारी, पैरों में गैगरिन, ब्रेन अटैक, क्राॅनिक ब्रोंकाइटिल, निमोनिया, उच्च रक्तचाप, लकवा, अवसाद, नपुंसकता, ऊर्जा में कमी आदि क्राॅनिक बीमारियां जन्म ले रही हैं। महिलाओं में तम्बाकू का सेवन गर्भपात और असामान्य बच्चों के जन्म का कारण बनता है। कैंसर के कारणों में तम्बाकू को ए श्रेणी में रखा गया है।

तम्बाकू में निकोटिन, नाइट्रोसामाइंस, बैन्जोपाइरीनर्स, आर्सेनिक और क्रोमियम आदि कैंसर पैदा करने वाले प्रमुख तत्व पाए जाते हैं। 12 से 20 वर्षों तक तम्बाकू का सेवन करने से कैंसर होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। अमेरिकी कैंसर सोसायटी के अनुसार वहां 46 प्रतिशत उपयोगकर्ता 18 वर्ष की आयु में तम्बाकू का सेवन प्रारंभ कर देते हैं। इन वस्तुओं का सेवन करने वाला इनका आदि हो जाता है तथा बड़ी मुश्किल से इनका सेवन छोड़ पाता है।

धूम्रपान करने वालों की आयु 10 से 12 प्रतिशत कम हो जाती है। देश में 1994 की रिपोर्ट देखें तो  एक वर्ष में 7700 करोड़ रूपये तम्बाकू उत्पाद पर खर्च किए गए तथा इसी वर्ष 5400 करोड़ रूपये तम्बाकू से जुड़ी बीमारियों पर खर्च किए गए, जो कि सरकार को तम्बाकू से होने वाली राजस्व आय से कई अधिक है। जब की दो दशक में  तम्बाकू से होने वाली बीमारियों के इलाज पर 1.04,500 करोड़ रुपये खर्च हुए। तम्बाकू जनित बीमारियों पर होने वाला व्यय बढ़ कर दुगुना हो गया तो आज बढ़ कर इसके 2 लाख करोड़ खर्च का अंदाजा तो लगाया जा सकता है।

सिगरेट के धुंए में 4000 से अधिक जहरीले पदार्थ पाए जाते हैं, जिनमें से 60 से अधिक पदार्थ कैंसर कारक हैं। 4 से 5 सिगरेटों में इतना निकोटिन होता है कि यदि किसी व्यस्त व्यक्ति के शरीर में इंजेक्ट कर दिया जाए तो उसकी मृत्यु हो सकती है। अकेले भारतवर्ष में 15 करोड़ से अधिक लोग धूम्रपान करते हैं। 15 से 49 वर्ष की आयु वर्ग के 30 प्रतिशत लोग इस कुटेव में जकड़े हैं, जबकि कच्ची उम्र के 13 से 15 वर्ष के 100 बच्चों में से 4 बच्चे इसकी गिरफ्त में हैं। तम्बाकू के प्रयोग में 48 प्रतिशत हिस्सा बीड़ी, 38 प्रतिशत हिस्सा गुटखे का तथा 14 प्रतिशत हिस्सा सिगरेट का है।

भारत का युवा बचपन कैसे इस नशे का शिकार हो रहा है इस बारे में ग्लोबल एडल्ट टोबेलको ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट सचेत कर देने वाली है। भारत मे तम्बाकू पदार्थो में 13 फीसदी लोग खैनी का उपयोग करते हैं। तम्बाकू की एक पीक जिंदगी के 3 मिनिट एवं एक सिगरेट 9 मिनिट कम कर देते हैं। हर 7 सेकंड में तम्बाकू पदार्थो से एक मौत होती है। धूम्रपान से 9 प्रतिशत फेफड़े का कैंसर,50 प्रतिशत ब्रोंकाइटिस एवं 25 प्रतिशत घातक ह्रदय रोग का कारण बनते हैं।

कुछ लोग सुबह उठते ही सबसे पहले तम्बाकू के गुटखे का सेवन करते हैं। कई लोग तो दिन भर में कई सौ रूपये का गुटखा गटक जाते हैं। यही नहीं, रात को सोने से पूर्व भी गुटखा गालों में दबा लेते हैं, जो पूरी रात मुंह में सड़ता रहता है। कई जगह तो दांत साफ करने के लिए तम्बाकू के मंजन का प्रचलन है। ऐसे मंजन से महिलाएं भी बड़ी संख्या में जुड़ी हैं और वे दिन में तीन-चार बार इस मंजन से अपने दांत साफ करती हैं। ऐसे मंजन से दांतों को साफ करने पर उनका एनामल छूट जाता है तथा मसूढ़े भी खराब हो जाते हैं। यह मंजन कई बार पायरिया रोग का कारण बन जाता है। एनामल हटने से दांतों में संवेदनशीलता बढ़ जाती है, जिससे ठंडा या गर्म लगने लगता है। दांतों में कैविटी बन जाती है, जिसमें खाद्य पदार्थ फंस जाने से दांतों में सड़न होने लगती है। दांतों की जड़ें बाहर आने लगती हैं, जिससे रूट केनाल की स्थिति बन जाती है।

तम्बाकू से जहाँ स्वास्थ्य के खतरें मंडराते हैं वहीं इस नशे की पृवर्ती अपराधों को भी जन्म देती हैं। बचपन मे लत लगने से बच्चे चोरी करने लगते हैं। वे बड़ों से छुप के नशा करते हैं तो झूठ बोलने लगते हैं। इस कारण कई बार लड़ाई-झगड़े की नोबत भी आजाती हैं। अनेक बार युवा तम्बाकू के नशे के अवैध कारोबार में भी लग जाते हैं।
यद्यपि सरकार सिगरेट के पैकेट पर इसके खतरे को देखते हुए सिगरेट नहीं पीने की चेतावनी देती है, परंतु इनका उपयोग कम होने के स्थान पर दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। सिगरेट का धुंआ जब अंदर जाता है तो शरीर में खून को साफ करने वाले फेफड़े काले पड़ने लगते हैं और उनमें टार जमा होने लगता है। अधिक सिगरेट पीने वाले लोगों के फेफड़े का निचोड़ें तो उसमें इतना टार जमा हो जाता है जो कैंसर की बीमारी का कारण बनता है। यही नहीं, तम्बाकू का सेवन करने वालों को पेट का अल्सर जैसी बीमारियां भी घेर लेती हैं। पिछले बीते कई वर्षों में विश्व मे सरकारों,सार्वजनिक स्वास्थ्य संगठनों,उत्पादकों एवं धूम्रपान करने वालो से उत्साह एवं प्रतिरोध दोनों मिले हैं। बड़ा विचित्र लगता है एक तरफ सरकार तम्बाकू निषेध के लिए जागरूकता अभियान चलाती है और उत्पादकों को सिगरेट पर स्वास्थ्य के लिए हानिकारक लिखने की चेतावनी देती है। क्यों नहीं इनके उत्पाद को बंद करने की दिशा में सकारात्मक पहल की जाए। अनेक समाजसेवी संस्थाए और व्यक्तिगत स्तर पर समाजसेवी लोग नशा मुक्ति अभियान चला कर सावचेत करते हैं। जब तक सरकार की दोहरी मानसिकता रहेगी तब तक कितने भी कानून बनाले और जागरूकता अभियान चला लें बहुत बड़े बदलाव की आशा करना व्यर्थ है , उल्टे तम्बाकू का सेवन सुुुरसा की मुख की तरह बढ़ता जा रहा है।

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