नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को निर्मोही अखाड़े से कहा कि शबैत (उपासक) का दावा कभी देवता के प्रतिकूल नहीं हो सकता। निर्मोही अखाड़ा ने कहा था कि ‘राम लला’ का मुकदमा खारिज किया जाए और अयोध्या में विवादित भूमि उसे दी जाए क्योंकि वह राम लला का एकमात्र उपासक है।

मामले में 11वें दिन दलीलों पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि अखाड़ा ‘राम लला विराजमान’ के मुकदमे को लड़ रहा है तो वह राम लला के स्वामित्व के खिलाफ जा रहा है और अदालत से देवता के मुकदमे को खारिज करने के लिये कह रहा है।

निर्मोही अखाड़ा ने बृहस्पतिवार को दावा किया था कि विवादित स्थल पर वह राम लला का एकमात्र ‘शबैत’ है, जिस पर न्यायालय ने कहा कि अगर ऐसा है तो अखाड़ा 2.77 एकड़ विवादित जमीन पर स्वामित्व नहीं रख सकता।

हालांकि अखाड़ा की ओर से बहस कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सुशील जैन ने न्यायालय की टिप्पणी का प्रतिवाद किया और कहा कि अखाड़ा ‘शबैत’ के नाते संपत्ति का कब्जेदार रहा है, इसलिए उसके अधिकार समाप्त नहीं हो जाते।

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने शुक्रवार को अखाड़ा के वकील की बात पर आपत्ति उठाते हुए कहा, ‘‘आप जब अपने खुद के देवता के मुकदमे को खारिज करने की मांग करते हैं तो आप उनके खिलाफ अधिकार मांग रहे हैं।’’

संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस ए नजीर भी शामिल रहे।

पीठ ने कहा, ‘‘शबैत का दावा कभी देवता के प्रतिकूल नहीं हो सकता। अगर आप (राम लला का) मुकदमा लड़ रहे हैं तो आप देवता के स्वामित्व के खिलाफ जाते हैं। आप शबैत (राम लला के भक्त) होते हुए राम लला का मुकदमा खारिज करने के लिए कह रहे हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मान लीजिए कि राम लला का मुकदमा खारिज हो जाता है तो आपका कोई स्वतंत्र दावा नहीं रह जाता। अगर देवता का अस्तित्व नहीं रहता तो आपका अस्तित्व नहीं रह सकता।’’

न्यायमूर्ति बोबडे ने अखाड़ा को यह स्पष्ट करने के लिये कहा कि क्या वह देवता के खिलाफ रुख अपना रहे हैं। उन्होंने वकील से कहा, ‘‘पहले हां या ना कहिए।’’

जैन ने अदालत से कहा कि राम लला की याचिका 1989 में आई थी लेकिन अखाड़ा 1934 से इस जगह का कब्जा रख रहा है।

उन्होंने कहा, ‘‘मैंने यह दलील दी है कि देवता के हित में आदेश केवल उपासक के पक्ष में दिया जा सकता है।’’

जैन ने कहा कि भगवान राम का जन्मस्थान ‘कानूनी व्यक्ति’ नहीं है जैसा कि दावा किया गया है और अखाड़ा को दलील पेश करने का हक है।

पीठ ने कहा कि अखाड़ा ने अब तक उच्च न्यायालय में रखे अपने विषय के विपरीत दलील दी है।

जैन ने कहा कि अखाड़ा संपत्ति के स्वामित्व पर दावा नहीं कर रहा, बल्कि उपासक के नाते इस पर कब्जे और इसका प्रबंधन संभालने का दावा कर रहा है।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं राम मंदिर के पुनर्निर्माण का अधिकार भी मांग रहा हूं और मैं अन्य कोई हक नहीं मांग रहा।’’

जैन ने कहा कि मामले में अन्य पक्षों को अखाड़ा का समर्थन करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि वह इस बात से इनकार नहीं कर रहे कि स्थान ‘वक्फ’ की संपत्ति है लेकिन ‘वक्फ’ हिंदू ‘वक्फ’ भी हो सकती है और इस शब्द का अर्थ केवल इतना है कि एक संस्था जो धार्मिक संपत्तियों का स्वामित्व रखती है और उनका प्रबंधन देखती है।

इस पर पीठ ने कहा, ‘‘आपको अपने ‘शबैत’ के अधिकार साबित करने के लिए हमें साक्ष्य दिखाने होंगे। हमें उससे संबंधित प्रमाण दिखाइए। आप हमें दस्तावेजी और मौखिक साक्ष्य दिखाइए।’’

जैन ने कहा कि किसी अन्य पक्ष ने अखाड़ा के देवता के उपासक होने के दावे को चुनौती नहीं दी है।

क्या अखाड़े के पास ‘शबैत’ के अधिकार के समर्थन में दस्तावेजी साक्ष्य हैं, इस प्रश्न पर जैन ने कहा, ‘‘मेरे पास मौखिक साक्ष्य (गवाह के) हैं जिन्हें अन्य पक्षों ने चुनौती नहीं दी है।’’

उन्होंने विवादित स्थल का प्रबंधन देखते रहने की ओर संकेत करने के लिए कुछ बयान पढ़े।

उन्होंने यह भी कहा कि एक डकैती में अखाड़े के रिकॉर्ड खो गये थे।

पीठ ने फिर रिकार्ड की ओर इशारा किया कि उन्होंने कहा है कि अखाड़ा ‘राम चबूतरा’ की पूजा करता रहा है। जैन ने कहा कि उसका आशय ‘राम चबूतरा मंदिर’ से है।

पीठ ने कहा, ‘‘ऐसा नहीं है। आपने विवादित मंदिर और राम चबूतरा के बीच भेद किया है।’’

वकील ने कहा कि मौखिक बयान उचित तरीके से दर्ज नहीं किये गये, इस पर पीठ ने कहा, ‘‘ये बयान गवाह के कठघरे में नहीं दिये गये। ये हलफनामे हैं जो उचित तरीके से सोच विचार कर तैयार किये गये हैं।’’

जैन ने कहा कि अखाड़ा ‘निर्धन’ है क्योंकि 1982 में विवादित ढांचे के बाहरी परिसर का कब्जा उससे लिये जाने के बाद उसका चढ़ावा और धन आदि चला गया और फिर 1992 में पूरा ढांचा गिरा दिया गया।

इस मामले में संविधान पीठ 26 अगस्त को आगे सुनवाई करेगी।

उच्चतम न्यायालय इस समय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर सुनवाई कर रहा है।

उच्च न्यायालय ने 2010 में चार दीवानी मुकदमों में अपने फैसले में 2.77 एकड़ विवादित जमीन को तीन पक्षों में बराबर-बराबर बांटने का फैसला सुनाया था। इनमें सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला हैं।

About The Author

Leave a Reply

%d bloggers like this: