लखनऊ के एसएसपी ने आयुर्विज्ञान संस्थान के डॉक्टर सवेंद्र विक्रम सिंह को गाजीपुर थाने के सिपाहियों द्वारा पीटने के मामले में बताया कि इंस्पेक्टर और सिपाही से पूछताछ में पता चला है कि पहले डॉक्टर ने सिपाही को थप्पड़ मारा था। रही बात कार्रवाई की तो डॉक्टर की पिटाई के मामले में एक नामजद समेत तीन सिपाहियों के खिलाफ लूट व मारपीट की धाराओं में रविवार शाम को एफआईआर दर्ज करा दी गई है।

एसएसपी के बयान से लगता है कि यूपी पुलिस ने चूडि़या नहीं पहन रखी हैं। उसे भी ईट का जवाब पत्थर से देना आता है। डॉक्टर ने सिपाही का गाल लाल किया तो जवानों ने उसका पिछवाडा लाल कर दिया।

सोशल मीडिया पर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के डॉक्टर सवेंद्र विक्रम सिंह का लाल रंग का पिछवाडा यूपी सरकार को भले ही न दिखाई दे रहा हो। लेकिन सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा दिखाई दे रहा है। मुख्यमंत्री योगी जी याद रहे कि चुनावी वर्ष नजदीक है ऐसे में एक-एक वोट कीमती होता है।

डॉक्टर सवेंद्र विक्रम सिंह तो पढ़े लिखे हैं। सरकारी कर्मचारी भी हैं। इंसाफ की लड़ाई भी लड़ सकते हैं। लेकिन उन बेचारे लोगों का क्या जो न तो पढ़े-लिखे हैं और न ही इंसाफ की लड़ाई का खर्च उठा सकते हैं। आये दिन आम जनता पुलिसिया गुड़ई का शिकार होती रहती है।

ज्ञात हो कि इंदिरानगर सेक्टर 19 निवासी डॉक्टर सवेंद्र विक्रम सिंह राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में कार्यरत हैं। सवेंद्र के मुताबिक वह षुक्रवार रात अपने नौकरानी के पिता को छुड़ाने गाजीपुर थाने गए थे, जहां थाने के सिपाही अमित कुमार समेत अन्य पुलिसकर्मियों ने उन्हें बंधक बनाकर जमकर पीटा और आठ हजार रूपये भी लूट लिये। काफी समय गुजरने के बाद जब डॉक्टर वापस नहीं लौटे तो उनके घरवाले गाजीपुर थाने पहुंचे, वहां का नजारा देखकर दंग रह गए। डॉक्टर को बेंत और बेल्ट से पीटने के बाद उन्हें हवालात में डाल दिया गया था।

एसएसपी साहब मैं आप से पूछना चाहता हूं कि इस मामले में आपने अपहरण और हत्या का प्रयास जैसी बड़ी धाराओं का इस्तेमाल क्यो नहीं किया? क्या किसी को बंधक बनाकर रखना अपहरण की श्रेणी में नहीं आता और क्या मारमार कर पिछवाडा लाल करना जान से मारने का प्रयास नहीं होता?

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