26/11 के बाद युद्ध का विचार, लेकिन दुनिया के दबाव ने रोका: चिदंबरम

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नई दिल्ली। मुंबई पर हुए 26/11 के आतंकवादी हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया था। पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के दस आतंकियों ने तीन दिनों तक देश की आर्थिक राजधानी को बंधक बनाए रखा था। 175 लोगों की जान गई और सैकड़ों घायल हुए। होटल ताज से लेकर नरीमन हाउस तक गोलियों और धमाकों की आवाज़ ने भारत की अस्मिता को गहरे तक चोट पहुँचाई।

उस समय देशभर में गुस्से की लहर थी। हर नागरिक के मन में सवाल था — क्या भारत पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब देगा?

घटनाक्रम

  • 26 नवंबर 2008, रात – आतंकियों ने मुंबई पर हमला बोला। ताज होटल, ओबेरॉय ट्राइडेंट, नरीमन हाउस और छत्रपति शिवाजी टर्मिनस निशाने पर।
  • 27-28 नवंबर – सुरक्षा बलों ने ऑपरेशन शुरू किया। दुनिया की नज़रें मुंबई पर टिक गईं।
  • 29 नवंबर – नौ आतंकियों को मार गिराया गया, अजमल कसाब जिंदा पकड़ा गया। 175 लोगों की मौत, 300 से ज्यादा घायल।
  • 30 नवंबर – 1 दिसंबर – दिल्ली में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और गृह मंत्री पी. चिदंबरम के बीच बैठक। सैन्य जवाब की संभावना पर चर्चा।
  • 2 दिसंबर – अमेरिका की विदेश मंत्री कोंडोलीजा राइस दिल्ली पहुंचीं। प्रधानमंत्री और गृह मंत्री से मुलाकात कर संयम बरतने की अपील की।
  • दिसंबर 2008 – भारत ने सैन्य कार्रवाई टाल दी और पाकिस्तान पर राजनयिक दबाव बढ़ाने का रास्ता चुना। पाकिस्तान को सबूत सौंपे गए और आतंकवाद के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने की कोशिश शुरू हुई।

चिदंबरम का खुलासा

तत्कालीन गृह मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम ने एक टीवी इंटरव्यू में कहा, “मेरे मन में बदले की कार्रवाई का विचार आया था। इस पर तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से चर्चा भी हुई थी। लेकिन पूरी दुनिया दिल्ली पर दबाव बना रही थी कि युद्ध मत शुरू करो। विदेश मंत्रालय और आईएफएस अधिकारियों की सलाह भी यही थी। अंततः हमने सैन्य कार्रवाई टालने का फैसला किया।”

गुस्से में जनता, सावधानी में सरकार

उस समय सड़कों पर लोग पाकिस्तान के खिलाफ कठोर कदम उठाने की मांग कर रहे थे। मीडिया में भी यह बहस छिड़ी थी कि “कब तक चुप रहेगा भारत?” लेकिन सरकार का मानना था कि जल्दबाज़ी में लिया गया कोई भी कदम क्षेत्रीय स्थिरता को बड़ा नुकसान पहुँचा सकता है।

विदेश नीति विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत ने संयम दिखाकर उस समय अंतरराष्ट्रीय समुदाय में ‘जिम्मेदार शक्ति’ की छवि बनाई, लेकिन घरेलू राजनीति में यह कदम कई बार कांग्रेस के लिए बोझ साबित हुआ।

बीजेपी का पलटवार

चिदंबरम के बयान पर बीजेपी ने कांग्रेस को घेरते हुए कहा कि भारत की सैन्य नीति हमेशा स्वतंत्र और राष्ट्रीय हितों के अनुसार रही है। केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने एक्स पर तंज कसते हुए लिखा, “ऑपरेशन सिंदूर भारत और पाकिस्तान के सैन्य कमांडरों की सीधी बातचीत का नतीजा था, न कि किसी तीसरे पक्ष का।”

राजनीति बनाम कूटनीति

26/11 के बाद से आज तक यह बहस जारी है कि भारत को तत्काल सैन्य जवाब देना चाहिए था या नहीं। चिदंबरम का यह नया खुलासा एक बार फिर उस पुराने घाव को कुरेदता है।
जहाँ बीजेपी कांग्रेस पर ‘कमज़ोर सरकार’ होने का आरोप लगाती है, वहीं कांग्रेस इसे ‘राजनयिक सूझबूझ’ और ‘युद्ध टालने की समझदारी’ करार देती है।

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