नयी दिल्ली, नोटबंदी के दौरान अवैध रूप से धन के लेन-देन के एक मामले में संभवत: पहली बार दिल्ली की एक अदालत ने शुक्रवार को पीएनबी के तीन अधिकारियों को चार वर्ष जेल की सजा सुनाई। अदालत ने कहा कि उनके कृत्यों से ‘‘उस संस्थान पर धब्बा’’ लगा जिसमें वे काम करते हुए आगे बढ़े हैं।

विशेष न्यायाधीश राजकुमार चौहान ने पूर्व वरिष्ठ अधिकारियों रामानंद गुप्ता, भुवनेश कुमार जुल्का और जितेन्दर वीर अरोड़ा को 10.51 लाख रुपये की वैध राशि को गलत तरीके से नोटबंदी की राशि के रूप में दिखाने और इसे ‘‘अनधिकृत और अवैध’’ रूप से बदलने के लिए दोषी ठहराया।

अदालत ने कहा, ‘‘दोषी के बैंक अधिकारी होने के कारण उनसे उम्मीद की जा रही थी कि वे ईमानदारी और सत्यनिष्ठा का पालन करें। दोषियों के कृत्य ने संस्थान पर धब्बा लगा दिया जिसमें काम करते हुए वे वरिष्ठ अधिकारी के पद तक पहुंचे…यह नोटबंदी के बाद बैंक अधिकारियों द्वारा शक्ति के दुरूपयोग का उत्कृष्ट उदाहरण प्रतीत होता है।’’

अदालत ने हर दोषी पर चार- चार लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया।

अदालत ने उन्हें भादंसं की धारा 120 बी (आपराधिक षड्यंत्र) के साथ धारा 409 (आपराधिक विश्वासभंजन), धारा 471 (फर्जी दस्तावेजों को मूल दस्तावेज के तौर पर इस्तेमाल करना), 477 ए (खाते में धोखाधड़ी) के साथ ही भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 13 (2), धारा 13(1) (डी) (नौकरशा द्वारा आपराधिक आचरण) के तहत दोषी ठहराया।

अभियोजन के मुताबिक पंजाब नेशनल बैंक की एक शाखा के उप सर्कल प्रमुख ने पांच अप्रैल 2017 को शिकायत दर्ज कराई थी।

इसमें दावा किया गया कि नोटबंदी के दौरान (दस नवम्बर 2016 से 30 दिसम्बर 2016 तक) बैंक की सिविल लाइंस शाखा में दो बार कुछ फर्जी रिकॉर्ड कम्प्यूटर, कोर बैंक सॉल्यूशन (सीबीएस) में डाला गया, जो जमाकर्ताओं द्वारा भरे गए मूल वाउचर के विपरीत थे।

इसने कहा कि जमाकर्ताओं ने वैध नोट नकदी में जमा कराए थे लेकिन कम्प्यूटर में इन्हें प्रतिबंधित करंसी नोट (एक हजार और पांच सौ रुपये) के तौर पर जिक्र किया गया।

शिकायत में कहा गया कि तीन अधिकारियों ने दस लाख 51 हजार रुपये के वैध नोट अनधिकृत रूप से बदले। सीबीआई ने छह अप्रैल 2017 को मामला दर्ज किया था।

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