उत्तर प्रदेश में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने ब्राह्मण नेताओं को साइड करना शुरू कर दिया है। 2024 लोकसभा चुनाव की तैयारी करते हुए मायावती ने मुस्लिमों और दलितों पर फोकस बढ़ा दिया है। कुल मिलाकर मुस्लिम-दलित ने ब्राह्मण-दलित फॉर्मूले की जगह ले ली है। मायावती ने हाल ही में पार्टी नेताओं की बैठक में मुस्लिम और दलित चेहरों को बड़ी जिम्मेदारी दी है। साफ है कि यूपी विधानसभा चुनाव में बसपा के निराशाजनक प्रदर्शन से मायावती को संदेश मिल चुका है कि 2007 में जीत का मंत्र रहा ब्राह्मण-दलित फॉर्मूला दोहराकर सत्ता में वापसी नहीं की जा सकती है।

यूपी की राजनीति में फिर से जीवित होने की कोशिश में जुटी बसपा ने 2024 लोकसभा चुनाव के लिए तैयारी शुरू कर दी है। हाल ही में पार्टी सुप्रीमो मायावती द्वारा उठाए कदम से साफ है उन्हें ब्राह्मणों से भरोसा उठ चुका है और उन्होंने वापस मुस्लिम और दलितों पर अपना फोकस कर लिया है।

दलित नेताओं को बड़ी जिम्मेदारी
बसपा ने दलित नेताओं को संगठन में महत्वपूर्ण पद दिए गए हैं और उन्हें 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी कैडर को तैयार करने का काम सौंपा गया है। घनश्याम चंद्र खरवार, भीम राव अंबेडकर, अखिलेश अंबेडकर, सुधीर भारती, राजकुमार गौतम, मदन राम और विजय प्रताप समेत इन नेताओं को अहम पद दिए गए हैं। बता दें कि 30 जून को हुई पार्टी नेताओं और पदाधिकारियों की बैठक में बसपा प्रमुख मायावती ने दलित समुदाय से आने वाले पार्टी मिशनरी नेताओं को जोनल प्रभारी बनाकर संगठन में फेरबदल किया।

मुस्लिम चेहरों पर फोकस
प्रदेश के मुसलमानों का समर्थन हासिल करने के लिए मुनकद अली शमशुद्दीन रैनी और नौशाद अली समेत समुदाय के नेताओं को भी पार्टी का जोनल प्रभारी बनाया गया है। पूर्व मंत्री और सपा के बागी मोहम्मद इरशाद खान, जो मध्य यूपी में मुस्लिम समुदाय पर प्रभाव रखते हैं, 5 जुलाई को बसपा में शामिल हो गए।

ब्राह्मण नेताओं को किनारे
दूसरी ओर, पार्टी में ब्राह्मण नेता जो पहले पार्टी संगठन में महत्वपूर्ण पदों पर थे, को दरकिनार कर दिया गया है। चुनाव के बाद बसपा के वरिष्ठ नेता नकुल दुबे को बाहर का दरवाजा दिखाया गया और अन्य ब्राह्मण नेताओं को भी दरकिनार कर दिया गया। बसपा के एक नेता के मुताबिक,आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव के लिए पार्टी के स्टार प्रचारकों की सूची में सतीश चंद्र मिश्रा को शामिल नहीं किया गया। यूपी में बसपा का विधानसभा चुनाव में निराशाजनक प्रदर्शन ने संकेत दिया है कि दलित-ब्राह्मण फॉर्मूला पार्टी के काम नहीं आया।

प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन नहीं आया काम
ब्राह्मण समुदाय का समर्थन जीतने के लिए बसपा ने राज्य भर में “प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन” का आयोजन किया था, लेकिन चुनाव में पार्टी के खाते में केवल एक सीट आ सकी। पार्टी के ब्राह्मण चेहरे सतीश चंद्र मिश्रा ने पूरे उत्तर प्रदेश में 50 से अधिक जनसभाओं को संबोधित किया था। ब्राह्मण बहुल सीटों पर भी बैठकें आयोजित की गईं लेकिन बसपा ब्राह्मण मतदाताओं में पैठ बनाने में विफल रही।

दलित-ब्राह्मण फॉर्मूले ने दिलाई थी सत्ता
दरअसल, सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूला (दलित-ब्राह्मण) पर सवार होकर बसपा उत्तर प्रदेश में 2007 के विधानसभा चुनाव के बाद सत्ता में आई थी। ब्राह्मण समुदाय के नेताओं को संगठन के साथ-साथ सरकार में महत्वपूर्ण स्थान दिए गए थे, क्योंकि पार्टी ने उस वक्त दलित-ब्राह्मण संयोजन के समर्थन से अपना आधार बढ़ाने की योजना बनाई थी। लेकिन, अब प्रदेश में राजनीतिक घटनाक्रम पूरी तरह बदल गए हैं।

बसपा नेता का कहना है कि 2012 और 2017 में बसपा की लगातार हार के बावजूद यूपी विधानसभा चुनाव में मायावती ने ब्राह्मण समुदाय के नेताओं पर अपना भरोसा कायम रखा। हालांकि, इस बार पार्टी की हार के बाद, बसपा प्रमुख ने दलित-ब्राह्मण से दलित-मुस्लिम गठबंधन का फॉर्मूला बदल दिया है।

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